________________ ESSERT जीव विचार प्रकरण SYSTERS मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा देते हैं, उन्हें चर ज्योतिष्क कहा जाता है / (2) अचर ज्योतिष्क - वे ज्योतिष्क देव, जो ढाई द्वीप से बाहर स्थित है एवं सदैव स्थिर ही रहते हैं, उन्हें अचर ज्योतिष्क कहा जाता है / प्रकाशित करने की अपेक्षा से ज्योतिष्क देवों को पांच भागों में विभाजित किया जा सकता हैं - (1) चन्द्र (2) सूर्य (3) ग्रह (4) नक्षत्र (5) तारा समभूतला पृथ्वी के उपर के 790 योजन के बाद ज्योतिष्क क्षेत्र का प्रारंभ होता है / 790 योजन के बाद तारों के विमान है / वहाँ से दस योजन की ऊँचाई पर सूर्य देवता का विमान है / वहाँ से अस्सी योजन की उँचाई पर चन्द्र देव का विमान स्थित है / वहाँ से चार योजन की ऊँचाई पर नक्षत्रों के विमान हैं एवं वहाँ से सोलह योजन की ऊंचाई पर ग्रहों के विमान हैं। (4) वैमानिक देव - वि - भिन्न - भिन्न, मान - प्रमाण, लम्बाई-चौडाई, माप / अलग - 2 मान/माप वाले विमानों में उत्पन्न होने वाले देव वैमानिक कहलाते हैं। ज्योतिष्क क्षेत्र के उपर असंख्यात योजन की ऊँचाई पर वैमानिक निकाय का प्रारंभ होता है / असंख्यात योजन पार करने के बाद मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में सौधर्म देवलोक एवं उत्तर में ईशान देवलोक स्थित है / सौधर्म देवलोक के बहुत उपर सम श्रेणी में तीसरा सनत्कमार देवलोक है, उसी प्रकार ईशान देवलोक के उपर माहेन्द्र देवलोक स्थित है / ईशान और माहेन्द्र देव विमान के बहुत उपर मध्य में ब्रह्मलोक है / उसके उपर छट्ठा लांतक देवलोक, उसके उपर सातवां महाशुक्र देवलोक, उसके उपर आठवां सहस्रार देवलोक है / उसके उपर पहले-दूसरे देवलोक के समान नवमां आनत एवं दसवां प्राणत देवलोंक है / उनके उपर समश्रेणी में ग्यारहवां आरण एवं बारहवां अच्युत देवलोक है। तीन किल्बिषिक देवों में से प्रथम किल्बिषिक प्रथम और दूसरे देवलोक के नीचे हैं। दूसरा किल्बिषिक देवलोक तीसरे और चौथे देवलोक के नीचे है / तीसरा किल्बिषिक छट्टे देवलोक के नीचे है।