________________ RESTT जीव विचार प्रकरण RASTRI लोए - लोक में सुहुमा - सूक्ष्म हवंति - होते हैं नियमा - निश्चय से (निश्चित् रुप से) अन्तमुहत्त - अन्तर्मुहूर्त आउ - आयुष्य (वाले) अद्दिस्सा - अदृश्य भावार्थ प्रत्येक वनस्पतिकाय को छोडकर अन्तर्मुहूर्त आयुष्य वाले पांचों ही सूक्ष्म पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय एवं साधारण वनस्पतिकाय, अदृश्य रुप से सम्पूर्ण लोक में निश्चित् रुप से होते हैं // 14 // . विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में सूक्ष्म पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय एवं साधारण वनस्पतिकाय जीवों के भेदों का वर्णन किया गया है / प्रत्येक वनस्पतिकाय सूक्ष्म रुप में नहीं होती है / पिछली 11 गाथाओं में पृथ्वीकायादि . का बादर रुप में वर्णन किया गया था / इस प्रकार पृथ्वीकायादि छह बादर रुप में होते हैं और प्रत्येक वनस्पतिकाय के अलावा पृथ्वीकायादि पांच सूक्ष्म रुप में भी होते हैं। अतः बादर एवं सूक्ष्म की अपेक्षासे ग्यारह भेद होते हैं। इन ग्यारह भेदों को पर्याप्ता एवं अपर्याप्ता की अपेक्षा से गिनने से 22 भेद होते हैं। सूक्ष्म से अभिप्राय- जिन जीवों का एक शरीर अथवा संयुक्त अनेक शरीर भी आँखों से न देखे जा सके एवं किसी यंत्र की सहायता से भी जाने / देखे न जा सके, उन जीवों को सूक्ष्म कहा जाता हैं / सूक्ष्म जीव उसी प्रकार संपूर्ण चौदह राज लोक में ठांस-ठांस कर भरे हुए हैं जैसे काजल की डिब्बी में अंजन / बादर से अभिप्राय- जिन जीवों को चर्म चक्षुओं से अथवा अन्य किसी यंत्र की सहायता से देखा जा सके, उन्हें बादर कहते हैं। यदि किसी एक शरीर को देखा जा सकता है अथवा अनेक शरीर एकत्र होने पर भी दृष्टिगोचर होते हैं, दिखाई देते हैं, वे बादर जीव कहलाते हैं।