SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - SHETREETTER जीव विचार प्रकरण SHRES (4) प्रयोजन - गाथा के दूसरे चरण में प्रस्तुत प्रकरण को रचने का कारण बताया है / जो अज्ञ जीव हैं, जीव के स्वरुप को और उसकी विषय वस्तु को नहीं जानते हैं। उन अज्ञानी, अबोध जीवों की जिज्ञासा को समाहित करने के लिये इस प्रकरण की रचना की गयी है। (5) अधिकारी - ‘अबुह' शब्द का अर्थ दो प्रकार से होता है - (1) जो अज्ञानी हैं। (2) जो ज्ञान रूपी प्रकाश को प्राप्त करके अज्ञान रुपी अंधकार को मिटाना चाहते हैं। प्रथम अर्थ 'प्रयोजन के रूप में ग्रहण किया गया है और द्वितीय अर्थ के अन्तर्गत इस प्रकरण को पढने के अधिकारीजनों का स्पष्टीकरण है / इस अपार संसार में अनंत जीव हैं पर वे जीव, जो इस प्रकरण से जीव स्वरुप का ज्ञान प्राप्त करके अपनी शंकाओं को समाधान का उजाला देना चाहते हैं / वे इस प्रकरण के अध्ययन के अधिकारी हैं। जीव के मुख्य भेद, संसारी एवं स्थावर जीवों के भेद गाथा जीवा मुत्ता संसारिणो य, तस थावरा य संसारी / पुढवी-जल-जलण-वाउ, वणस्सई थावरा नेया // 2 // अन्वय मुत्ता य संसारिणो जीवा तस य थावरा संसारी पुढवी-जल-जलण वाउवणस्सई थावरा नेया // 2 // संस्कृत छाया जीवा मुक्ता: संसारिणश्च त्रसा: स्थावराश्च संसारिणः / पृथ्वी जलं ज्वलन: वायुर्वनस्पतिः स्थावरा ज्ञेया: // 2 // शब्दार्थ जीवा - जीव | मुत्ता - मुक्त, जो जन्म-मरण रूपी संसार (जिसमें चेतना विद्यमान है।) | से मुक्त हो गये हैं। .. .. .
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy