________________ THIS जीव विचार प्रकरण ARE AMARPAN Masti पात्सल चित्र : महावीर प्रभु को दीपक की उपमा / विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में मुख्य रुप से पांच बातों का वर्णन किया गया हैं(१) मंगलाचरण (2) विषय (3) सम्बंध (4) प्रयोजन (5) अधिकारी (1) मंगलाचरण - मंगल + आचरण मंगल - शुभ , पुण्यकारी, उचित आचरण - प्रवृत्ति, क्रिया तीर्थंकर परमात्मा हमारे आदर्श हैं। उनको वंदन/नमन करने से अधिक पुण्यकारी एवं शुभ आचरण और क्या हो सकता है! अत: ग्रंथकार ने त्रिलोक में प्रदीप के समान प्रभु . महावीर को वंदन रुपी मंगलाचरण से गाथा का शुभारंभ किया है / मंगलाचरण करने से सर्वत्र मंगल ही मंगल होता है। आचरण भी मंगल रूप बन जाता है। मंगलाचरण के परिणाम स्वरुप ग्रंथ स्चने वाले, ग्रंथ पढने एवं पढाने वाले के कष्ट नष्ट हो जाते हैं। (2) विषय - गाथा के तीसरे चरण में ग्रंथ का विषय स्पष्ट किया है / प्रस्तुत प्रकरण में __ संक्षेप में जीव तत्त्व का स्वरुप समझाया गया है। (3) संबंध - गाथा के चतुर्थ चरण में ग्रंथकार कहते हैं कि यह प्रकरण मैं अपनी कल्पना के आधार पर नहीं रच रहा हूँ। यह प्रकरण परमात्मा महावीर की देशना से संबंधित है। गणधर गौतम स्वामी, सुधर्मा स्वामी, श्रुतकेवली भद्रबाहुस्वामी ने प्रभु देशना के अनुरुप जैसा जीव-स्वरुप प्ररुपित किया है, उसी तर्ज/आधार पर मैं यह प्रकरण लिख रहा हूँ।