________________ ENTRY जीव विचार प्रकरण RESISTERSTAB जीव विचार प्रकरण मंगलाचरण, विषय, संबंध, प्रयोजन और अधिकारी गाथा भुवण-पईवं वीरं, नमिऊण भणामि अबुहबोहत्थं / जीवं-सरूवं किंचिवि, जह भणियं पुव्वसूरीहिं // 1 // अन्वय भुवण-पईवं वीरं नमिऊण जह पुव्वसूरीहिं भणियं किंचिवि जीव-सरूवं अबुह-बोहत्थं भणामि // 1 // * संस्कृत छाया भुवन प्रदीपं वीरं नत्वा, भणामि अबुध बोधार्थम् / जीव स्वरूपं किंचिदपि यथा भणितं पूर्वसूरिभिः // 1 // शब्दार्थ भुवण - भुवन, लोक (में) . पईवं - प्रदीप, दीपक (के समान) वीरं - महावीर स्वामी को नमिऊण - नमस्कार-प्रणाम करके भणामि - कहता हूँ। अबुहबोहत्थं - अबोध-अज्ञानी जीवों के जीव-सरूवं - जीव का स्वरूप .. बोध के लिये। किंचिवि - थोडे कथन में, संक्षेप में जह - जैसा, जिस प्रकार भणियं - कहा है, बताया है पुव्वसूरीहिं - पूर्वाचार्यों ने भावार्थ लोक (त्रिभुवन) में दीपक के तुल्य परमात्मा महावीर स्वामी को नमन - वंदन करके अबोध जीवों के बोध-ज्ञान के लिये संक्षेप में जीव तत्त्व का स्वरुप कहता हूँ, जैसा पूवाचार्यों ने बताया है // 1 //