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________________ HTTERT जीव विचार प्रकरण ARTISTS प्रचलित धारणा के अनुसार भवनपति, व्यंतर, नारकी को संज्ञी ही माना है। पुस्तक के निर्माण में मेरी अपनी मौलिक प्रस्तुति नहीं है। संपूर्ण सामग्री मैंने आगमों एवं अनेक ग्रंथों से ली है। यद्यपि मैंने इसे सरल, स्पष्ट एवं पूर्ण बनाने का प्रयास अवश्य किया है। नये-नये तरीकों से प्रश्नोत्तर तैयार करने में मेहनत लगी जिन, जिनोपदिष्ट आगम एवं अतिरिक्त ग्रंथों-पुस्तकों के प्रति मैं हार्दिक कृतज्ञता प्रस्तुत करता हूँ। कोई भी पुस्तक अनेक हाथों, मस्तिष्क का स्पर्श करती हुई ही अपने मुकाम को प्राप्त करती है। उसमें किसी की दृश्यादृश्य प्रेरणा होती है तो किसी का आशीर्वाद भी होता है। किसी का सहयोग तो किसी का अपनत्व। यह पुस्तक भी इन बिंदुओं से अछूती नहीं रही है। पुस्तक लेखन में पूज्य गुरुदेव श्री का शुभाशीष प्राप्त हुआ है तो उनका मार्गदर्शन भी मेरी राह को सुगम बनाने में परम सहयोगी बना है। और प्रेरणा तो उन्हीं की है पुस्तक के प्रस्तुतीकरण में / इस प्रेरणा को एक तरह से अनुग्रह कहिये या आदेश! कुछ भी समझिये पर है गुरूदेव श्री की अबोध शिष्य पर वात्सल्य भरी कृपा / उनकी प्रेरणा रही कि तुम जीव विचार प्रकरण की पुस्तक का निर्माण करो जिसमें सरल हिंदी विवेचन हो और एक प्रश्नोत्तरी का खण्ड भी हो जो जीव तत्त्व से संबंधित समस्त जिज्ञासाओं को समाधान दे सके। ग्रीष्म ऋतु के थका देने वाले लम्बे विहार और पठन-पाठन की व्यस्तता के मध्य समय निकालकर प्रकरण का लेखन कर पाना थोडा मुश्किल लग रहा था। बात आयी-गयी, हो गयी और इस बीच लम्बा वक्त व्यतीत हो गया। .. पार्श्वमणि तीर्थ आदोनी का कार्यक्रम संपन्न कर हम आगे के विहार में थे। एक दिन पुनः गुरूदेव श्री ने लेखन के संदर्भ प्रेरणा दी और वह प्रेरणा लेखनी को प्रवाहमान करने का माध्यम बन गयी। मन संकल्पबद्ध हो गया कि शीघ्र ही इस कार्य को संपन्न करना है। मैं तन-मन से लेखन में लग गया और लगभग तीन माह में कार्य पूरा हो गया। जीव विचार प्रश्नोत्तरी का निर्माण करने से पूर्व लग रहा था कि प्रकरण छोटा
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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