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________________ 888 जीव विचार प्रश्नोत्तरी 88888 3) लब्धि अपर्याप्ता करण अपर्याप्ता ही होता है, वह कभी भी करण पर्याप्ता नहीं बनता है। 4) करण अपर्याप्ता यदि लब्धि पर्याप्ता है तो करण पर्याप्ता बनता है और यदि लब्धि अपर्याप्ता है तो करण अपर्याप्ता ही रहता है अर्थात् स्वपर्याय योग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। 5) करण पर्याप्ता जीव में अवश्यमेव लब्धि पर्याप्ता ही होता है। . 65) पर्याप्ति किसे कहते है ? उ. जिस शक्ति के द्वारा जीव आहार ग्रहण करके उसे रस में परिणमित करता है / रस को शरीर एवं इन्द्रियों में रूपान्तरित करता है / एवं श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन योग्य पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण कर श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन रूप बनाता है, जीव की उस शक्ति को पर्याप्ति कहते है। 66) पर्याप्तियाँ कितनी होती हैं? उ. पर्याप्तियाँ छह होती हैं- 1) आहार पर्याप्ति 2) शरीर पर्याप्ति 3) इन्द्रिय पर्याप्ति 4) श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति 5) भाषा पर्याप्ति 6) मन पर्याप्ति / 67) एकेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ? उ. चार पर्याप्तियाँ - आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति / 68) द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ? उ. पांच पर्याप्तियाँ - आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास और भाषा पर्याप्ति। / 69) संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य, देवता, नारकी और तिर्यंच जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं? . उ. छह पर्याप्तियाँ - आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन। 70) असंज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य एवं तिर्यंच के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं? उ. मन पर्याप्ति के अतिरिक्त पांच पर्याप्तियाँ होती हैं। 71) कौन-कौन से जीव पर्याप्ता और अपर्याप्ता होते हैं? 3. एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, देव, नारकी, गर्भज-संमूर्छिम पंचेन्द्रिय
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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