SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ GISTER जीव विचार प्रकरण HTTERTREETTES जीवन शुद्धि नहीं कर पायेगा। हेय अर्थात् छोडने योग्य। ज्ञेय अर्थात् जानने योग्य / उपादेय अर्थात् स्वीकार करने योग्य / जीव, अजीव जानने योग्य ज्ञेय हैं। पाप; आश्रव, बंध छोडने योग्य हेय हैं और पुण्य, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष स्वीकार करने योग्य उपादेय तत्त्व हैं। जब तक जीव तत्त्व की सूक्ष्मता को हम नहीं समझेंगे तब तक उसके जीवन की सुरक्षा में सहयोग नहीं कर पायेंगें। बहुधा हम अनावश्यक और व्यर्थ की जीव हिंसा से स्वयं को दूषित कर बैठते हैं। और इसका कारण हैं- जीव के ज्ञान से हमारी अनभिज्ञता / अगर हम सभी प्रकार के निगोद से लेकर सिद्धों की स्थिति से अवगत हो जाये तो हम अपने जीवन को अहिंसामय भी बना सकते हैं, साथ ही उनके उपकारों का स्मरण कर उनके प्रति कृतज्ञ भी हो सकते हैं। उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है- परस्परोपग्रहो जीवानाम् / उसका अर्थ यही है कि एक जीव दूसरे जीव का उपकारी है। अगर हम इस सृष्टि पर गहरी नजर डाले तो समझ में आ सकता है कि मानव एकेन्द्रिय जीवों का कितना आभारी है ! पांचों स्थावर जीव निकाय मनुष्य के जीवन को आगे बढाते हैं। हम इनके द्वारा किये जाने वाले उपकारों को समझ लें तो कम से कम उन्हें अपनी ओर से अनावश्यक वेदना नहीं देंगे। चूंकि उनके अस्तित्व के प्रति हम न विश्वस्त है और न आश्वस्त / अतः व्यर्थ ही मात्र आदत या लापरवाही के कारण उन्हें कष्ट दे देते हैं। जैसे कोई व्यक्ति चलते हुए पत्थर उठाकर पानी में फैंक देता है या पेड-पौधों की पत्तियाँ तोड देता है। अगर उससे पूछे कि इसका कारण क्या था तो उत्तर होगा "योंहि"। हमारी जिंदगी इसीलिये गतिशील नहीं है कि हमारा अपना आयुष्य कर्म कारण है। बल्कि उनका भी उपकार है जो सावधानी एवं जागरूकता से बस, गाडी चलाते हैं। अगर चालक असावधानी से गाडी चलाता तो संभव था कि हम दुर्घटना के शिकार हो जाते। ऐसा एक बस चालक ही नहीं, अगणित व्यक्ति हैं जो जाने अनजाने हमारे उपकारी हो जाते हैं।
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy