SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SHETRESSERT जीव विचार प्रकरण RTISTORIES प्रज्ञामृतम्............. अनुज मुनि श्री मनितप्रभजी के सतत् पुरूषार्थ से तैयार की गयी जीव विचार पुस्तक का प्रकाशन मेरे हृदय.को जितना आह्लादित कर रहा है, उतना ही मुझे चिंतन के लिये भी मजबूर कर रहा है। इन दिनों में उनके द्वारा साहित्य जगत को विशिष्ट उपहार निरंतर प्राप्त होते जा रहे हैं। मैं उनके इस अवदान से चकित हूँ कि आखिर वे लेखन के लिये इतनी ऊर्जा कहाँ से प्राप्त कर रहे हैं! समाधान उनकी समर्पित एवं ज्ञानपिपासु चेतना दे देती वे समूह के बीच रहकर भी एकांत साधना करते हुए मान संयम व ज्ञान-साधना में ही मतिशील है। कभी-कभी तो उनसे ईर्ष्या भी हो जाती है कि मैंने लम्बे संयम पर्याय में भी साहित्य जगत को इतना समृद्ध नहीं किया तो वे अपने छोटे से संयम पर्याय में आगे कैसे हो गये? परंतु जहाँ लक्ष्य के प्रति निष्ठा हो, वहाँ असंभव कुछ भी नहीं है। उनका यह परम सौभाग्य है कि अभी के अपने गुरुदेव के पावन सानिध्या में व्यवहारिक व सामुदायिक उत्तरदायित्वों से मुक्त भी हैं परंतु यह कोई कारण नहीं है। ऊनकी साहित्य साधना में निरंतर सोपाल श्रेणी चहने का है बल्कि मुख्य कारण तो भीतर की गहरी प्यास है जो उन्हें लेखन के क्षेत्र में सतत् आगे बढ़ा रही है। जीव विचार प्रकरण कोई कहाली, उपन्यास या घटना प्रधान साहित्य नहीं है बल्कि यह तत्त्वज्ञान से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रकरण है। इस प्रकरया में जीव संबंधी संपूर्ण सामग्री:समाहित हो गयी है। ... ... .. जैन संस्कृति में तीन तत्वों की मुख्यत्ता रही है- हेय, ज्ञेया और-उपादेय / इन तत्त्वों की जानकारी जब तक व्यक्ति नहीं प्राप्त करेया, वहीं चाहकर भी अपनी
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy