________________ को आहारक, वैक्रिय, तैजस और केवलि समुद्घात नहीं होता है। सिर्फ वेदना, कषाय और मरण ये तीन समुद्घात ही होते हैं। अयुगलिक गर्भज मनुष्यों में भी लब्धि रहित को पहले तीन समुद्घात और लब्धिवंत छद्मस्थ को (असर्वज्ञ को) यथासंभव केवलि समुद्घात के बिना 4-5-6 समुद्घात होते है वैक्रिय लब्धि तैजस लब्धि और आहारक लब्धि इन तीन लब्धि में से जिसको एक लब्धि हो उसको चार समुद्घात, दो लब्धिवंत को 5 समुद्घात और तीन लब्धि हो उनको 6 समुद्घात होते है श्री सर्वज्ञ भगवंत को सिर्फ एक केवलि समुद्घात ही होता है तथा सर्वत्र सामान्य से ऐसा नियम है कि अपर्याप्त अवस्था में भी किसी जीव को प्रथम के तीन समुद्घात हो सकते है। प्रश्न :- केवलि भगवंत अनंत लब्धिवाले होते हैं तो उनको वैक्रिय, आहारक और तैजस समुद्घात क्यों नहीं है और निर्वाण प्राप्त होने पर भी मरण समुद्घात क्यों नहीं ? उत्तर :- लब्धि को प्रगट करना वह प्रमादावस्था गिनी जाती है और केवलि भगवंत अप्रमादी है तथा उनको लब्धि प्रगट करने का प्रयोजन नहीं है। इसलिए वैक्रिय, तैजस और आहारक समुद्घात केवलि भगवंत को होता नहीं है तथा मरण समुद्घात पर-भव में उत्पन्न होनेवाले जीव को आत्मप्रदेशों का दीर्घ दंड करने से कितनेक जीवों को होते है लेकिन केवलि भगवंत को परलोक में उत्पन्न होने का नही होता है तथा निर्वाण के समय आत्मप्रदेश कंदुक की तरह पिंडित होकर मोक्ष में जाते है इसलिए मरण समुद्घात नही है। वेदनीय कर्म का उदय है, लेकिन व्याकुलता तथा उदीरणा न होने से वेदना समुद्घात नहीं है। फूटनोट : १६वी और 17 वी गाथा कोई दूसरे ग्रंथ की है। इसलिए इन दो को छोडकर १५वी से १८वीं जोडकर समुद्घात की विचारना करने पर 24 दंडकों में समुद्घात मिल जायेंगे। १६वीं गाथा नामों के लिए है और १७वीं गाथा उसके संबंध की वजह से आयी है। | दंडक प्रकरण सार्थ (68) समुद्घात द्वार चालु