________________ कृष्ण-नील और काफेत ये तीन लेश्या परावृत्ति से (बदलती रहने से) होती है और चोथी तेजोलेश्या तो जब ईशानकल्प तक के तेजोलेश्या वाले कोई देव बादर लब्धि पर्याप्त पृथ्वी, बादर पर्याप्त अप्काय और बादर पर्याप्त प्रत्येक वनस्पतिकाय में उत्पन्न होते है तब ये पृथ्वी आदि तीन दंडक के जीवों को भव का पहले अन्तर्मुहूर्त में तेजोलेश्या अपर्याप्त अवस्था में होती है, पर्याप्त अवस्था में तो इन तीनों दंडक को पहली तीन लेश्या ही होती है। // 24 दंडक में६ लेश्या॥ 1 ग.तिर्यंच को 6 लेश्या 1 वैमानिक को - 3 शुभ लेश्याएँ 1 ग. मनुष्य को 6 लेश्या 1 ज्योतिषी को-१ तेजो 1 नरक को . 14 शेष दंडको को-४ पहेली लेश्याएँ 1 अग्निकाय 3 अशुभ 1 वायकाय को- लेश्याएँ 3 विकलेन्द्रिय को २४दंडक में इन्द्रिय द्वार 5 स्थावर को एक स्पर्शनेन्द्रिय होने से 1 इन्द्रिय है। बेइन्द्रिय को स्पर्श और रसना ये दो इन्द्रिय है। तेइन्द्रिय को स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय ये तीन इन्द्रिय है। चतुरिन्द्रिय को स्पर्शन-रसना-घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रिय है। और शेष 13 देवदंडक, 1 नरक, 1 गर्भज तिर्यंच और१ गर्भज मनुष्य, ये सभी मिलकर 16 दंडक को स्पर्शन-रसना घ्राण-चक्षु और श्रोत्र ये 5 इन्द्रियां हैं इस प्रकार यह इन्द्रियद्वार समझने में अत्यंत सरल है। . ९वां समुद्घात द्वार गर्भज मनुष्यों को सात समुद्घात होते हैं वहां संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य को ही यथासंभव 7 समुद्घात है और युगलिक मनुष्य | दंडक प्रकरण सार्थ (67) समुद्घात द्वार चालु