________________ संस्कृत अनुवाद योजनमेकंचतुरिन्द्रियदेहोच्चत्वं श्रुतेभणितं। वैक्रियदेहःपुनरइगुलसंख्येयांशआरम्भे॥८॥ शब्दार्थ :देह-शरीर का वेउव्विय-वैक्रिय उच्चत्तणे-उच्चत्त्व पुण-और सुए-सूत्र में, सिद्धांत में संखस-संख्यातवां भणियं-कहा है आरंभे-प्रारंभ में अन्वय सहित पदच्छेद सुएचउरिंदिदेहं उच्चत्तणंएगंजोयणं भणियं। पुणवेउवियदेहंआरंभेअंगुल-संखंस||८|| गाथार्थ: . सिद्धान्त में चतुरिन्द्रिय के शरीर की ऊंचाई एक योजन प्रमाण कही है / और वैक्रिय शरीर की प्रारंभ में अंगुल के संख्यातवा भाग जितनी होती है। विशेषार्थ चतुरिन्द्रिय जीवों का शरीर एकयोजन प्रमाण कहा है वह मनुष्य क्षेत्र के बाहर रहे हुए द्वीप समुद्रों में रहनेवाले भ्रमरादि का जानना। भ्रमरादि की यह अवगाहना सिद्धांत में कही है। उत्तर वैक्रिय शरीर की अवगाहना जिस जिस दंडक पदों में आगे वैक्रिय लब्धि मालुम की गयी है वे उस-उस दंडक पदों के जीव जब वैक्रिय शरीर रचने का प्रारंभ करते है तब प्रारंभ में अंगुल के संख्यातवा भाग जितना छोटा वैक्रिय शरीर बनाते हैं, बाद में वह बढ़ता-बढ़ता एक लाख योजन से कुछ अधिक जितना हो जाता है। लेकिन प्रारंभ में तो छोटा ही होता है। | दंडक प्रकरण सार्थ (52) .अवगाहना द्वार