________________ (2)(2) तथा तेइन्द्रिय का 3 गाऊ का और बेइन्द्रिय का 12 योजन का शरीर प्रमाण है। वह प्रायः करके ढाईद्वीप के बाहर के द्वीप समुद्र में उत्पन्न होनेवाले कान-खजुरा आदि का अनेक क्रोडो योजन विस्तारवाले समुद्र में उत्पन्न होनेवाले शंखादि द्वीन्द्रिय का जानना। गाथा जोयणमेगंचउरिंदि-देहमुच्चत्तणंसुएभणियं। वेउवियदेहपुण, अंगुलसंखंसमारंभे॥८॥ भूमि से उपर सपाटी तक कमल की नाल 1000 योजन ऊंची रहने से इतनी लंबी गिनी जाती है, और जल की सपाटी से कमल के पुष्प जितना ऊंचा रहे, इतनी अधिकता 1000 योजन उपरांत समझना। इसलिए "1000 योजन अधिक' वनस्पति प्रमाण कहा है वह उत्सेधांगुल प्रमाण से 1000 योजन ऊंचाईवाले वनस्पतिकायिक कमलादि है और पृथ्वीकायिक कमलादि भी संभवित है। उनसे भी अधिक गहराई में जो कमलादि है वह केवल पृथ्वीकाय रूप ही है। वह सर्वोत्कृष्ट ऊंचाईवाले पृथ्वीकायिक कमलादि वनस्पति के आकार समुद्र की सपाटी को शोभा देती है। .. उत्सेधांगुल, आत्मांगुल तथा प्रमाणांगुल ये तीन प्रकार के अंगुल का माप अन्य ग्रंथो से जान लेना। तथा वनस्पति की यह उत्कृष्ट अवगाहना जलाशयों में ही होती है, परन्तु स्थलों में होने वाली नहीं और कमलादि वनस्पति की उत्कृष्ट अवगाहना होती है लेकिन आम्रवृक्ष की नहीं, ऐसा विशेषतः जानना। फूटनोट :. . (2) अंतर्मुहुर्त आयुवाले और उत्पन्न होते ही 12 योजन के शरीरवाला होकर, तुरंत मृत्यु पाते ही भूमि पर इतना बडा खड्डा हो जाता है की चक्रवर्ति की सेना को भी जमीनमें गिरा देनेवाले ऐसे आसालिक जाति के सर्प को शास्त्र में (उर : परिसर्प ति.पं. और मतान्तरे) द्वीन्द्रिय भी कहा हा। वह महादेहवाले द्वीन्द्रिय ढाईद्वीप में भी होते है इसलिए प्रायः कहा है। | दंडक प्रकरण सार्थ (51) अवगाहना द्वार