________________ 5. कुब्ज :- वामन से विपरीत याने मस्तक आदि 4 अवयव प्रमाण रहित हो और पीठ आदि शेष अवयव प्रमाण युक्त हो, तो वह कुब्ज संस्थान कहा जाता है। 6. हुंडक :- प्रायः सभी अवयव प्रमाण रहित हो वह हुंडक संस्थान कहा जाता है। 6. कषाय-४ कषाय याने मलिनता, कर्मबंध का मुख्य हेतु है कषाय आत्मा की वैभाविक मलिनता है और कर्म संसार का कारण है, इसलिए कष्' याने संसार या कर्म, 'आय' याने लाभ करानेवाला वह कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ इस तरह चार प्रकार से प्रसिद्ध है। ___7. लेश्या -6 कभी-कभी कोई मनुष्य बहुत क्रोधी होते है, कोई मायावी, कोई लोभी, अभिमानी होते है ऐसे भाव किसी प्रकार के निमित्त से उत्पन्न होते है, उसे कषाय कहते हैं। फिर भी प्राणीमात्र के स्वभाव का जन्म से एक प्रकार का बंधारण बना हुआ होता है। अर्थात् प्रसंग आने पर प्राणी कषाय करते है लेकिन जन्म से ही एक प्रकार का स्वभाव होता है / जैसे कि कोई क्रोधी प्राणी, कोई शांत स्वभावी, कोई उग्र याने गुस्सेबाज, घातकी-क्रूर, दयालु, धैर्यवंत, जल्दबाजी वाले होते है। इस प्रकार स्वभाव के बंधारण को लेश्या कहते है। प्रश्न :- कर्मग्रन्थ के अभिप्राय से आठ कर्म और उनके उत्तर भेद बताये है, उसमें लेश्या के कर्म और उनके विपाक नहीं बताये है, तो फिर लेश्या यह कोई पदार्थ है, या पुद्गल की कोई असर है, या जीवात्मा की असर है ? | दंडक प्रकरण सार्थ (19) कषाय - लेरया द्वार