________________ 1. समचतुरस्र संस्थान :- शरीर के सभी अवयव सामुद्रिक शास्त्र में बताये हुए प्रमाण से युक्त हो वह समचतुरस्र संस्थान कहा जाता है। गर्भज मनुष्य के बारे में सोचा जाये तो पर्यंकासन (पद्मासन) से बैठे हुए आदमी का 1) दाएँ घुटने से बाएँ खंधे तक। 2) बाएँ घुटने से दाएँ खंधे तक। 3) बाएँ घुटने से दाएँ घुटने तक। और 4) पर्यंकासन के मध्यभाग से लेकर नासिका के अग्रभाग तक, ये चारों माप में समान हो तो समचतुरस्र संस्थान कहा जाता है, सम-समान चतु-चारों (दो खंधे और दो घुटने) अम्र-कोने, जिसके चारों कोने समान.हो वह समचतुरस्र संस्थान कहा जाता है। 2. न्यग्रोध परिमंडल :- (न्यग्रोध याने वटवृक्ष की तरह, परिमंडल याने चारों ओर ऊपर से मंडलाकार / नाभि से ऊपर के अवयव प्रमाण युक्त हों और नाभि से नीचे के अवयव प्रमाण रहित हों वह न्यग्रोध संस्थान कहा जाता है। 3. सादि :- पांव के तल से लेकर नाभि तक का जो भाग है वह आदि याने शरीर का पहला आधा भाग प्रमाण युक्त हो और ऊपर का आधा भाग प्रमाण रहित हो वह सादि संस्थान। इस संस्थान को कितने ग्रंथकारों ने इसे साची (शाल्मली वृक्ष के आकार जैसा) भी कहा है। 4. वामन :- मस्तक, ग्रीवा, हाथ, पांब, ये चार अवयव प्रमाण युक्त हो और पीठ, उदर, छाती शेष अवयव प्रमाण रहित हो वह वामन संस्थान कहा जाता है। 24 अंगुल, जानु (गुडा का ढेका) 4 अंगुल, साथल 24 अंगुल, बस्ति (कुला का भाग) 12 अंगुल, उदर 12 अंगुल, छाती 12 अंगुल, ग्रीवा (कंठ-डोक) 4 अंगुल, मुख 12 अंगुल, इस तरह 108 अंगुल की ऊंचाई जाननी / तथा पायतल अंगुठे सहित 14 अंगुल लंबा और 6 अंगुल चौडा, केड की लंबाई 18 अंगुल, छाती का विस्तार 24 अंगुल, अंगुलीसहित हाथ की लंबाई 46 अंगुल, मस्तक की लंबाई 32 अंगुल, जंघा का परिधि 18 अंगुल, जानु की परिधि 21 अंगुल, साथल की परिधि 32 अंगुल, नाभि के नीचे भाग की परिधि 46 अंगुल, छाती और पीठ दोनो मिलकर परिधि 56 अंगुल, तथा ग्रीवा की परिधि 24 अंगुल, इत्यादि रीत से अंगोपांग के दूसरे भी छोटे-छोटे अनेक प्रमाण है। दंडक प्रकरण सार्थ (18) संस्थानद्वार