________________ दिवीदंसणनाणेजोगुवओगोववायचवण ठिई: पज्जति किमाहारे,सन्नि गईआगईवेए|४|| संस्कृत अनुवाद संक्षिप्ततरात्वियंशरीरमवगाहनाचसंहननानि। संज्ञासंस्थानकषाय-लेश्येन्द्रियद्विसमुद्घाताः॥३॥ दृष्टिदर्शनं ज्ञानं,योगउपयोग उपपातश्च्यवनं स्थितिः। पर्याप्तिः किमाहार:संज्ञिर्गतिरागतिर्वेदः||४|| शब्दार्थ :संखित्तयरी-अति संक्षिप्त / दंसण-दर्शन उ-और नाणे-ज्ञान इमा-यह जोग-योग सरीरं-शरीर, देह / उवओग-उपयोग ओगाहणा-अवगाहना उववाय-उपपात जन्म संघयणा-संघयण चवण-च्यवन मरण सन्ना-संज्ञा ठिई-स्थिति, आयुष्य संठाणं-संस्थान पज्जति-पर्याप्ति कसाय-कषाय किमाहारे-किमाहार दिगाहार लेस-लेश्या. सन्नि-संज्ञि इंदिय-इन्द्रिय गई-गति दुसमुग्घाया-दो समुद्घात आगई-आगति दिट्ठी-दृष्टि | वेए-वेद अन्यवसहित पदच्छेद उसंखित्तयरीइमा,सरीरंओगाहणायसंघयणा सन्नासंठाण कसाय, लेसाइन्दियदुसमुग्घाया // 3 // दिवीदेसण नाणे, जोगउवओगउववायचवणठिई। पज्जति किमाहारे,सन्नि गईआगईवेए॥४॥ | दंडक प्रकरण सार्थ (7) 24 द्धाटों का संक्षिप्त संग्रह |