________________ गाथार्थ चोवीस जिनेश्वरों को प्रणाम करके, दंडकपदों द्वारा उनके सूत्रों का विचार-स्वरूप के, अल्पभाग को दिखाते हुए, उनकी ही स्तुति करूंगा, अत: हे भव्य जीवों आप सुनियें। विशेषार्थ इस गाथा में मंगलाचरण, विषय, संबंध, प्रयोजन और अधिकारी का वर्णन किया गया हैं। 1. मंगलाचरण :- ग्रन्थरचना रूप उत्तम कार्य की पूर्णता में किसी भी प्रकार के विघ्न न आयें, इसलिए हितस्वी और आस्तिक शिष्टपुरुषों की आज्ञा अनुसार तपश्चर्या, गुरु आज्ञा, ध्यान-प्रणिधान, स्तुति, पवित्रमन आदि जो जो. मांगलिक क्रियाएँ ग्रंथारंभ करने के पहले आचार्य महाराज ने की हो, वह आचार शिष्यों को परम्परा में मिलता रहे, इसलिए 'नमिउं चउवीस जिणे' इस तरह मंगलाचरण के पद रखे हैं। 2. विषय :- दंडक पदों के बारे में श्री जिनेश्वरों के आगम में दर्शित विचार को, संक्षेप में समझाना है। 'दंडग-पएहिं वियारलेसदेसणओ' इन पदों से विषय दर्शाया गया है। . 3. संबंध :- ये विचार अपनी मति कल्पना से दर्शाया नहीं है। लेकिन जिनेश्वर प्रभु के शास्त्रों में जो दर्शाया गया है, उनके अनुसार कहा जायेगा। मतलब यह है कि आगम शास्त्रों के साथ इस प्रकरण का संबंध है। यह संबंध गाथा में तस्सुत्त-वियार' पदों से दर्शाया गया है। 4. प्रयोजन :- भविक बालजीवों को संक्षेप में ज्ञान कराने के लिए, और संसारी जीवों की मुसीबतें समझाकर मोक्ष के लिए उत्कंठित करने के लिए, तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए उत्सुक जीवों को मोक्ष के उपाय के रूप में श्री जिनेश्वर भगवंतों और उनके उपदेश का शरण स्वीकारने का सूचन करके परंपरा से स्व | दंडक प्रकरण सार्थ নালার