________________ / / श्री आदिनाथाय नमः। श्रीदंडक प्रकरण सार्थ मंगल, विषय, संबंध, अधिकारी और प्रयोजन / गाथा: नमिउंचउवीस जिणे, तस्सुत्तवियारलेसदेसणओ; दंडगपएहिंते चियथोसामि,सुणेह भो? भत्वा||२|| संस्कृत अनुवाद : नत्वाचतुर्विंशतिजिनान, तत्सूत्रविचारलेशदेशनतः। दण्डकपर्दस्तानेव, स्तोष्यामिशृणुध्वं भो। भव्याः॥१|| शब्दार्थ :नमिउं-नमस्कार करके दंडगपएहिं-दंडक के पदों से चउवीस-चौवीस ते-उन जिनेश्वरों की जिणे-जिनेश्वरों को च्चिय-निश्चय, ही तस्सुत्त-उनके सूत्र का थोसामि-स्तुति करूंगा सिद्धांत का सुणेह-सुनियें वियार-विचार, स्वरूप भो-हे। लेस-अल्प भव्वा-भव्य जीवों। देसणओ-दिखानेसे। कहने से | अन्वय सहित पदच्छेद चउवीस-जिणे नमिउं, दंडग-पएहिं तस्सुत-वियार-लेस-देसणओ ते च्चिय थोसति, भो ! भव्वा ! सुणेह // 1 // | दंडक प्रकरण सार्थ (1) मंगलाचरण