________________ और पर के मोक्ष का निमित्तरूप होना प्रयोजन है। इसकाल के बालजीव विस्तार से, आगम के विचार समझ नहीं सकने की वजह से, वे शास्त्र बोध से वंचित रहते हैं, शास्त्र बोध से वंचित रहने की वजह से अधिगम नहीं होता, अधिगम नही हो, तो फिर सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान, सम्यग् चारित्र की प्राप्ति किस तरह होगी? इसलिए संक्षेप में बोध कराने के लिए, इस प्रकरण की रचना आवश्यक है। प्रायोजन :-संक्षेप में पदार्थ का बोध कराना (लेस-देसणओ)' 2. पदार्थ का बोध कराके मोक्ष की अभिलाषा जागृत करनी। 3. मोक्ष की अभिलाषा जागृत करने के बाद अरिहंतों का शरण स्वीकार करने की सलाह अपने दृष्टांत से करना। तेच्चिय-थोसामि . (भगवान की स्तुति करना, यह भी एक सम्यक् चारित्र है। जिसके परिणाम में सम्यक् चारित्र हो वहीं सम्यग् ज्ञान कहलाता है।) 4. सम्यग् ज्ञान गर्भित सम्यक् चारित्र मोक्ष का मुख्य उपाय है। परंपरा से खुद को और श्रोताओं को मोक्ष प्राप्ति हो, यह भी प्रयोजन हैं। 5. अधिकारी :- इस ग्रंथ के श्रवण, अभ्यास और चिंतन के अधिकारी भव्य जीव हैं। क्योंकि भव्य जीवों में ही इस ग्रंथ का, अभ्यासादि का कुछ भी परिणाम आने की संभावना है। 'सुणेह भो / भव्वा' / इस पदसे गाथा में अधिकारी का सूचन किया गया है। अभव्य जीव मोक्षप्राप्ति के लिए अयोग्य होने से, उनको शास्त्रोपदेश देना निष्फल है। . 6. 24 की संख्या :- इस गाथा में चोवीस तीर्थंकर भगवंतों को प्रणाम रूप मंगलाचरण किया है। उन चोवीस तीर्थंकरों के एक समान अभिप्रायवाले सूत्रों के अनुसार ही चोवीस प्रकार के विचार, चोवीस दंडकों द्वारा समझाते-समझाते उन चोवीस तीर्थंकरों की स्तवना रूप इस ग्रंथ की रचना की जाती है। दंडक प्रकरण सार्थ (3) मंगलाचरण