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________________ शब्दार्थ :गंगा- गंगानदी सिंधु-सिंधुनदी रत्ता-रक्तानदी रत्तवई-रक्तवती नदी नईओ- नदीयां हैं चउदसहिं- चौदह सहस्सेहिं- हजार समगं- सहित वच्चंति-जाती हैं जलहिंमि-समुद्र में गाथार्थ ___ गंगा, सिंधु, रक्ता, और रक्तवती ये चार नदियां हरेक चौदह, चौदह हजार के साथ समुद्र में जाती हैं। विशेषार्थ : भरत-क्षेत्रमें गंगा और सिंधु ये दोनो महानदी लघु हिमवंत पर्वत पर रहा हुआ पद्मह्रद में से निकलकर छोटी चौदह हजार दूसरी नदियाँ के साथ अनुक्रम से पूर्व और पश्चिम की ओर बहती हुई आगे लवणसमुद्र से मिलती हैं। इसी तरह ऐरावत क्षेत्र में रक्तवती तथा रक्ता नदी शिखरी पर्वत पर रहा हुआ पुंडरीक हृद में से निकलकर छोटी चौदह हजार दूसरी नदीयों के साथ अनुक्रम से पश्चिम (वहां के सूर्योदय की अपेक्षा से पूर्व) तथा पूर्व (वहां के सूर्योदय की अपेक्षा से पश्चिम) की ओर बहती हुई आगे लवणसमुद्र से मिलती है। नदीयां का परिवार गाथा : एवं अख्तिरिया चिउरोपुणअट्ठवीससहस्सेहिं पुणरविछप्पन्नेहिं, सहस्सेहिंजंतिचउसलिला||२२|| * फूटनोट :"अब्भंतरगा” - ऐसा पाठ भी है। નવુ મંago માર્શ (68) વહિયાં ઘરિવાર
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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