________________ का ज्ञान प्राप्त कर सकते है और देश विरति तथा सर्वविरति का चारित्र ग्रहण करके यथायोग्य अहित मार्ग का त्याग करके हितकारक मार्ग का स्वीकार करते 1. कितनेक ग.पंचेन्द्रिय तिर्यंच भी सम्यक्तव तथा देशविरति चारित्र (रूप हेयोपादेयत्व) प्राप्त करने से उनको भी दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा होती है। लेकिन वह अल्प प्रमाण में होने से शास्त्र में नही कहा है। (१)सिर्फ सम्यग्दृष्टित्व की अपेक्षा से विचार किया जाय तो देवादि चारोगतिवाले जीवों में दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा होती है लेकिन विशिष्ट श्रुतज्ञान तथा हेयोपादेय रूप चारित्र का अभाव होने से उनको इस संज्ञा की मुख्यता नहीं मानी है।(२) // 24 दंडक में 3 संज्ञा॥ 13 देव में-१ / | दीर्घकालि - ३विकलेन्द्रिय को-१(हेतुवा.) 1 ग.तिर्यंच को 5 स्थावर को-० 1 नरक को _ " 1 ग.मनुष्य को-२(दीर्घ.दृष्टि) गति-आगति द्वार देव में आगति पर्याप्त गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा पर्याप्त गर्भज मनुष्य ही चार प्रकार के देवो में (10 भवनपति, 1 व्यंतर, 1 वैमानिक, 1 ज्योतिषी स्वरूप 13 दंडक में) उत्पन्न होते है। यह सामान्य से कहा है विशेष स्वरूप से 563 भेद की गतिआगति में सोचेंगे। फूटनोट :(1)1. दंडक प्रकरण की अवचूरी में तथा वृत्ति में भी तिर्यंच पंचे, को दृष्टिवाद. संज्ञा कहीं है लेकिन अल्पत्व की वजह से गिना नहीं है। (२)इस अपेक्षा से ही शास्त्रों में सभी मिथ्यात्विओं को असंज्ञि कहा है। | दंडक प्रकरण सार्थ (101) गति - आगति द्वार चालु