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________________ देव की गति गाथा संखाउ-पज्जपणिंदि-तिरियनरेसु, तहेवपज्जत्ते। भूदगपत्तेयवणे, एएसुच्चियसुरागमणं||३४|| संस्कृत अनुवाद संख्येयायुष्कपर्याप्त पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्नारेषुतथैव पयप्तिषु। भूदकप्रत्येकवनेषु.एतेष्वेवसुरागमनम्॥३४॥ अन्वय सहित पदच्छेद संख आउपज्ज पणिदितिरियनरेसुतह एव पज्जते भूदगपत्तेयवणेएएसुच्चियसुरआगमणं॥३४॥ शब्दार्थ संखाउ-संख्यात आयुष्यवाले | दग-अप्काय (में) पज-पर्याप्त पत्तेय-प्रत्येक पणिंदि-पंचेन्द्रिय वणे-वनस्पतिकाय में तहेव-उसी तरह एएसु-इन (5) दंडक पदमें पज्जत्ते-पर्याप्त च्चिय-निश्चय, ही। भू-पृथ्वीकाय (में) गाथार्थ ___ संख्यात् वर्ष के आयुवाले पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य में तथा बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय, अप्काय और प्रत्येक वनस्पतिकाय इनमें ही देवों की आगति होती है। नरक की गति-आगति गाथा पज्जत्तसंखगब्भय-तिरियनरा निरयसत्तगेजति,। दंडक प्रकरण सार्थ (102) गति - आगति द्वार चालु
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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