SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठ आगम अद्दुत्तरी रहस्यों को भी प्रकट किया है, जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलते, जैसे प्रथम प्रहर में दांयी ओर मृग के दर्शन शुभ शकुन है। मैथुन करते हुए गधे के गुप्त अंगों को देखने से सदैव मन-वाञ्छित प्रयोजनों की सिद्धि होती है आदि। कर्तृत्व ग्रंथ की अंतिम गाथा के आधार पर यह माना जा सकता है कि इस ग्रंथ के कर्ता आचार्य अभयदेवसूरि हैं लेकिन ये कौन से अभयदेवसूरि हैं, यह आज खोज का विषय है। अभयदेव के नाम से अनेक आचार्य हुए हैं, उनमें तीन आचार्य प्रसिद्ध हैं। प्रथम अभयदेवसूरि ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी में हुए, जो दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् थे। उन्होंने सिद्धसेन के सन्मति तर्क प्रकरण पर 25000 पद्य परिमाण वादमहार्णव टीका की रचना की। द्वितीय अभयदेवसूरि बारहवीं शताब्दी में हुए, जो नवांगी टीकाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं तथा तीसरे अभयदेवसूरि सोलहवीं-सतरहवीं शताब्दी में हुए। सिद्धराज जयसिंह राजा ने जिन्हें 'मलधारी' उपाधि से विभूषित किया। इस ग्रंथ का सम्बन्ध कौन से आचार्य के साथ है, यह विमर्श का बिन्दु है। ग्रंथ-रचना के वैदुष्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इस ग्रंथ के रचनाकार सुप्रसिद्ध नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि ही होने चाहिए। 'अट्ठत्तरिया' उल्लेख से यह स्पष्ट है कि इस ग्रंथ में 108 गाथाएं होनी चाहिए लेकिन वर्तमान में इस ग्रंथ में 115 गाथाएं मिलती हैं। इनमें कौन-सी सात गाथाएं बाद में प्रक्षिप्त हुईं, यह आज स्पष्ट नहीं है। यदि अंतिम गाथा को बाद में प्रक्षिप्त माने तो फिर कर्तृत्व के आगे भी प्रश्नचिह्न लग जाएगा। नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि की रचना मानें तो इस ग्रंथ की रचना का समय विक्रम की पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी होना चाहिए। वैसे भी इस ग्रंथ की कोई भी हस्तलिखित प्रति सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से पूर्व की नहीं मिलती।
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy