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________________ आगम अद्भुत्तरी मैं भी उसका विवाह इसके साथ करके प्रसन्न होता और मातंगों को भोजन कराता।' तब उस मातंगी ने आकर सारा यथार्थ वृत्तान्त बताया। यह सुनते ही वह मातंग रुष्ट हो गया और देवता के प्रभाव से उस शिविका में बैठे मातंग को नीचे गड्ढे में गिराते हुए बोला-'तुम असदृश कन्याओं के साथ परिणय रचा रहे हो।' मेतार्य बोला-'कैसे?' वह बोला-'तुम अवर्ण हो।' मेतार्य बोला-'कुछ समय के लिए मुझे मुक्त कर दो। मैं बारह वर्ष तक घर में और रहूंगा।' देव बोला-'फिर मैं तुम्हारे लिए क्या करूं?' मेतार्य ने कहा-'तुम मुझे राजा की कन्या दिला दो।' इससे सारी बातें स्पष्ट हो जायेंगी और मलिनता धुल जाएगी। देवता ने उसे एक बकरा दिया। वह मींगनियों के बदले रत्नों का विसर्जन करता था। उससे रत्नों का थाल भर गया। मेतार्य ने पिता से कहा-'रत्नों का थाल ले जाकर राजा से उनकी बेटी मांगो।' पिता ने राजा को रत्नों का थाल भेंट किया। राजा ने पूछा- क्या चाहते हो?' वह बोला-'आपकी पुत्री मेरे पुत्र के लिए चाहता हूं।' राजा ने उसे तिरस्कृत करके बाहर निकाल दिया। वह प्रतिदिन रत्नों से भरा थाल ले जाता परन्तु राजा उसे बेटी देने को तैयार नहीं हुआ। एक दिन अभयकुमार ने पूछा-'इतने रत्न कहां से लाते हो?' वह बोला-'मेरा बकरा प्रतिदिन रत्नों का व्युत्सर्ग करता है।' अभय बोला'हमें भी वह बकरा दिखाओ।' वह बकरे को लेकर आया। उसने वहां अत्यंत दुर्गन्ध युक्त मल का व्युत्सर्ग किया। अभय बोला-'यह देवता का प्रभाव है अतः परीक्षा करनी चाहिए।' अभय ने मातङ्ग से कहा-'महाराज श्रेणिक भगवान् को वंदना करने वैभार पर्वत पर जाते हैं परन्तु मार्ग बड़ा कष्टप्रद है इसलिए रथमार्ग का निर्माण करो।' उसने रथमार्ग का निर्माण कर दिया, जो आज तक विद्यमान है। अभय ने कहा-'स्वर्णमय प्राकार बना दो!' उसने वैसा ही कर डाला। अभय फिर बोला-'यदि यहां समुद्र को लाकर उसमें स्नान कर शुद्ध हो जाओ तो बेटी दे देंगे।' वह समुद्र ले आया और उसमें स्नान कर शुद्ध हो गया। राजा ने शिविका में घूमते हुए उसका विवाह अपनी बेटी के साथ कर दिया। सभी विवाहित कन्याएं भी वहां आ
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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