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________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं 63 पहुंची। राजा ने साधुओं को बुलाया। उन्होंने कहा-'हमारे यहां एक अतिथि मुनि आया था। हम नहीं जानते, वह कहां है?' उसकी खोज की गई। साधु उद्यान में था। राजा वहां गया और क्षमायाचना की। वह उन दोनों को मुक्त करना नहीं चाहता था। साधु बोला-'यदि दोनों प्रव्रजित हों तो मुक्त कर सकता हूं।' दोनों को पूछा गया तो उन्होंने प्रव्रजित होना स्वीकार कर लिया। उनकी सारी अस्थियां अपने-अपने स्थान पर स्थित हो गईं। साधु ने लोच करके दोनों को प्रव्रजित कर लिया। राजपुत्र ने सोचा-'मेरे पितृव्य ने ठीक ही किया है।' लेकिन पुरोहित पुत्र साधु से जुगुप्सा करने लगा। वह सोचता था कि मुनि ने कपट से मुझे प्रव्रजित किया है। वे दोनों मरकर देवलोक में उत्पन्न हुए। दोनों ने यह संकेत दिया कि जो देवलोक से पहले च्युत हो, वह दूसरे को प्रतिबोध दे। . पुरोहित पुत्र का जीव देवलोक से च्युत होकर जुगुप्सा के कारण राजगृह नगर में एक मातंगी के गर्भ में आया। उस मातंगी की सखी एक सेठानी थी। उनके सखित्व का एक कारण था कि वह मातंगी मांस बेचती थी। एक दिन सेठानी ने उससे कहा-'मांस बेचने के लिए अन्यत्र मत घूमना। सारा मांस मैं खरीद लूंगी।' मातंगी प्रतिदिन मांस लाती। दोनों में घनिष्ठ प्रीति हो गई। वह सेठानी निन्दु-मृतप्रसवा थी। उसने मृतपुत्री का प्रसव किया। तब मातंगी ने एकांत में सेठानी को अपना पुत्र दे दिया और उसकी मृतपुत्री को ले लिया। वह सेठानी मातंगी के पैरों में उस बालक को .लुठाती और कहती कि यह तुम्हारे प्रभाव से जी सके। उसका नाम मेतार्य रखा गया। वह बढ़ने लगा। उसने अनेक कलाएं सीखीं। उसके मित्र देव ने उसे प्रतिबोध दिया परन्तु वह प्रतिबोधित नहीं हुआ। तब माता-पिता ने एक ही दिन में आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण कर दिया। नगर में वह शिविका में घूमने लगा। इधर वह मित्र देवता मातंग के शरीर में प्रविष्ट हुआ और रोने लगा। मातंग के शरीर में स्थित देव बोला-'यदि मेरी पुत्री जीवित होती तो आज
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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