________________ आगम अद्भुत्तरी एक चिनगारी मुनि की ओर फेंकी। ग्वालों द्वारा परिवेष्टित वस्त्रों ने वह आग पकड़ ली। इधर वह भयभीत ब्राह्मण अपने घर पहुंचा और डरते-डरते पत्नी को सारी बात बताई। भय के कारण उसी रात्रि में उसकी मृत्यु हो गई। संवेरे जब ग्वालों ने मुनि को अर्धनग्न अवस्था में देखा तो उनको बहुत पश्चात्ताप हुआ। सभी ग्वाले कुंचिक श्रेष्ठी के पास गए और सारा घटना प्रसंग बताया। नगर में स्थित अन्य साधु अतुंकारीभट्टा के यहां से लक्षपाक तैल लाए और मुनि का उपचार किया। सम्यक् उपचार से मुनि स्वस्थ हो गए। कुंचिक सेठ ने मुनिपति साधु का चातुर्मास करवाया। सेठ ने पुत्र से छिपाकर कुछ धन उपाश्रय में रख दिया। सेठ के पुत्र ने चोरी से वह धन ग्रहण कर लिया। सेठ ने मुनिपति साधु को कहा-"आप कृतघ्न हैं, मेरे घर में आश्रय लेकर आपने मेरे धन को चुरा लिया। मुनि ने कहा–'मैं निर्दोष हूं लेकिन सेठ को मुनि की बात पर विश्वास नहीं हुआ।' जिनशासन में आए कलंक को देखकर मुनि को आवेश आया और उनके मुख से धुंआ निकलने लगा। सेठ का पुत्र भयभीत हो गया। भावी की आशंका से उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली। वास्तविकता का ज्ञान होने पर सेठ ने भी मुनि से * क्षमायाचना की। कुंचिक सेठ इस घटना से विरक्त होकर दीक्षित हो गया। मुनिपति समाधिमरण प्राप्त करके देवलोक में गए। बाद में महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। 13. मुनि मेतार्य साकेत नगर का राजा चन्द्रावतंसक था। उसकी दो पत्नियां थींसुदर्शना और प्रियदर्शना। सुदर्शना के दो पुत्र थे-सागरचन्द्र और मुनिचन्द्र। प्रियदर्शना के भी दो पुत्र थे-गुणचन्द्र और बालचन्द्र / सागरचन्द्र को युवराज 1. आगम 112 / 2. चूर्णि के अनुसार रानी का नाम धारिणी था, जिसके दो पुत्र थे-गुणचन्द्र और मुनिचन्द्र। गुणचन्द्र युवराज था, मुनिचन्द्र के पास उज्जयिनी का आधिपत्य था। एक अन्य रानी से राजा के दो पुत्र थे। (आवचू. 1 पृ. 492) ,