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________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं रानी अपने पति के बालों को संवार रही थी। उसके सिर पर सफेद बाल देखकर उसने कहा-'राजन्! चोर आ गया है?' राजा ने विस्मय से चारों ओर देखा लेकिन उसको कोई दिखाई नहीं दिया। राजा ने पूछा-'कहां है चोर?' तब रानी ने सिर का सफेद बाल उखाड़कर दिखलाया। इस घटना से राजा विरक्त हो गया। उसने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर स्वयं संन्यास ग्रहण कर लिया। दीक्षित होकर वे प्रतिमाधारी बनकर एकाकी विचरण करने लगे। एक बार वे उज्जयिनी नगरी की क्षिप्रा नदी के किनारे कायोत्सर्ग कर रहे थे। उनको वस्त्र रहित देखकर ग्वालों को करुणा आ गई। ग्वालों ने अपने कपड़ों से मुनि के शरीर को वेष्टित कर दिया। उसी नगरी में एक तिलभट्ट नामक ब्राह्मण रहता था। वह स्वभाव से अत्यन्त भद्र था लेकिन उसकी पत्नी धनश्री कुटिला और भ्रष्ट आचरण वाली थी। ब्राह्मण तिल का क्रयविक्रय करता था। ब्राह्मण ने भावी लाभ के लिए एक कोष्ठक में तिलों का संग्रह लिया। उसकी पत्नी ने उसे बेचकर विलासिता में धन का अपव्यय कर दिया। धीरे-धीरे सारे तिल समाप्त हो गए। ब्राह्मणी ने सोचा कि ब्राह्मण जब तिल के बारे में पूछेगा तो मैं क्या उत्तर दूंगी? .... एक बार ब्राह्मण कार्यवश बाहर गया हुआ था। उस दिन कृष्णा चतुर्दशी थी। उसने शरीर को पंखों से ढ़ककर मुंह को काला कर लिया। एक हाथ में जलते हुए अंगारों से भरा शराव और दूसरे हाथ में खप्पर और कटार ले ली। अपने केशों को चारों ओर फैला दिया। जिह्वा को बाहर निकालकर वह जंगल से आते हुए तिलभट्ट के पास गई और बोली"तिलभट्ट को खाऊं या तिलों के ढेर को?" तिलभट्ट भयभीत होकर बोला-"देवी! आप कृपा करके मुझे छोड़ दें, सारे तिलों का आप भक्षण कर लें।" - ब्राह्मणी ने अपने मूल कपड़े जहां उतारे थे, वह वहां आई। वहां * प्रज्वलित चिता के प्रकाश में मुनिपति मुनि को ध्यानस्थ देखकर घबरा गई। उसने सोचा कि कहीं मुनि मेरी बात लोगों को न कह दे, यह सोचकर उसने
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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