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________________ आगम अद्भुत्तरी उसकी भक्ति से प्रभावित होकर राजा ने उसे प्रधान पुरुष बना दिया। कुछ दिनों के पश्चात् राजा के मन में दिग्विजय करने की बात उभरी। उस प्रधान पुरुष को सब कुछ दायित्व सौंपकर राजा सेना के साथ अन्य देशों को जीतने चला गया। राजा के जाने के पश्चात् वह अंत:पुर में आसक्त हो गया। भविष्य के परिणाम को न जानकर वह पटरानी के साथ भोग भोगने लगा। दिग्विजय करके राजा सकुशल अपने राज्य में पहुंच गया। वहां पहुंचते ही राजा ने प्रधान पुरुष की शिकायत सुनी। उसके दुश्चरित्र को जानकर राजा ने लोगों के समक्ष विडम्बना करके उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करवा दिए। 4. श्रेणिक की श्रद्धा राजा श्रेणिक राजगृह नगरी का राजा था। उसकी देव, गुरु और धर्म पर दृढ़ आस्था थी। एक बार सुधर्मा सभा में इन्द्र ने उसकी प्रशंसा की। एक देव ने इन्द्र की बात पर विश्वास नहीं किया। एक साधु का रूप बनाकर वह राजा श्रेणिक के सम्मुख आया। श्रेणिक ने उसके पात्र में मांस देखा। श्रेणिक ने जब साधु से उस संदर्भ में पूछा तो उसने कहा-"सभी साधु जिह्वा-लोलुप होकर छिपछिपकर मांस खाते हैं।" श्रेणिक ने कहा-"यह संभव ही नहीं है कि निर्ग्रन्थ साधु कभी अभक्ष्य का सेवन करें। मेरी साधुओं पर अटूट आस्था है।" आगे चलने पर श्रेणिक ने गर्भवती साध्वी को देखा। धर्मशासन की अवहेलना न हो इसलिए श्रेणिक उसको तलघर में लेकर गया। श्रेणिक ने उस साध्वी का सारा परिकर्म स्वयं किया। देव रूप साध्वी ने मरे हुए गाय के मांस जैसी दुर्गन्ध की विकुर्वणा की लेकिन वह 1. आगम 26-29 /
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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