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________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं चंडप्रद्योत ने नगर को घेर रखा था। उस समय मृगावती ने साहस के साथ महाराज चंडप्रद्योत को कहलवाया-'अब इस दुनिया में आपके सिवाय मेरा और कौन है?' यदि आप मुझे चाहते हैं तो उज्जयिनी की चारदीवारी तुड़वाकर उन ईंटों से कौशाम्बी की टूटी हुई चारदीवारी को पूरा करवा दो। उसके बाद कुछ चिन्तन किया जा सकता है। राजा ने मृगावती की समयज्ञता और चतुराई को उसका प्रेम-निमंत्रण समझा। प्रेमराग के वशीभूत होकर राजा ने दुर्ग के चारों ओर परकोटा बनवाना शुरू कर दिया। दुर्ग का परकोटा तैयार होते ही प्रद्योत पुनः मृगावती को पाने के लिए लालायित. हो गया। संयोगवश उसी समय भगवान् महावीर का वहां आगमन हुआ।. राजा प्रद्योत भगवान् के चरणों में उपस्थित हुआ और रानी मृगावती भी उदयन को साथ लेकर समवसरण में पहुंची। मृगावती ने भगवान् के चरणों में अपनी प्रार्थना प्रस्तुत करते हुए कहा-"भगवन् ! संसार के स्वरूप को जानकर मैं अब आपके चरणों में प्रव्रजित होना चाहती हूं। बालक उदयन की रक्षा का भार मैं महाराज चंडप्रद्योत को सौंपना चाहती हूं। पुत्र को उसे सौंपते हुए रानी मृगावती ने चंडप्रद्योत से दीक्षा की अनुमति मांगी। समवसरण के प्रभाव से राजा का कामविकार नष्ट हो गया। उसने रानी को सहर्ष दीक्षा की आज्ञा दे दी। प्रद्योत ने मंत्रियों के संरक्षण में उसके पुत्र को कौशाम्बी के सिंहासन पर बिठा दिया। 3. आज्ञा की अवहेलना एक राजा की पत्नी ने किसी दरिद्र पर कृपा करके राजा को निवेदन किया कि इसकी दरिद्रता दूर की जाए। राजा ने पत्नी की बात स्वीकार करके उस दरिद्र पुरुष को धनवान् बना दिया। धनवान् बनने के बाद वह कृतज्ञतावश राजा की भक्ति करने लगा। 1. आगम 13 /
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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