________________ पाठ-सम्पादन एवं अनुवाद के बल या बुद्धि का ह्रास होता है? 23. अणुयोगदारसुत्ते, लोगुत्तरऽऽवस्सयं जिणवरेहि। आणाए अणुचिण्णं, मोक्खफलं होति भव्वाणं॥ ___अनुयोगद्वार सूत्र में जिनेश्वर भगवान् ने लोकोत्तर आवश्यक की बात कही है। आज्ञापूर्वक उसका आचरण करने से भव्य प्राणियों को मोक्ष का फल प्राप्त होता है। 24. आणाए अणुचिण्णाऽऽवस्सयकालम्मि समणसंघेहि। ___ लोउत्तरिया ठविता, परंपरा वीतरागेहिं॥ श्रमणसंघ के द्वारा आवश्यक काल में आज्ञा के अनुसार आचरण किया जाता है, वह लोकोत्तर परम्परा वीतराग के द्वारा स्थापित है। 25. जं किंचि अणुट्ठाणं, जिणिंदआणाएं बहुफलं होति। जह वडतरुव्व बीयं, वित्थारं लहति वुईते // कोई भी अनुष्ठान जिनेन्द्र की आज्ञा के अनुसार किया जाता है तो वह बहुत फलदायक होता है, जैसे वटवृक्ष का बीज बढ़ते- बढ़ते अति विस्तार को प्राप्त कर लेता है। 26. केण विरण्णारंको, भज्जावयणेण कारितो धणवं। सो वि य तसुत्ति भत्तो, पहाणपुरिसो कतो झत्ति॥ किसी राजा ने अपनी पत्नी के कथन से किसी दरिद्र को धनवान् बना दिया। वह दरिद्र राजा के प्रति अति भक्ति करने लगा। ..'उसकी भक्ति देखकर राजा ने उसे तत्काल प्रधान पुरुष बना दिया। 27. तस्स वि सव्वं भालिय, राया साहेति सव्वदेसा य। _ अंतेउररंगिल्लो, आणाभंगं न याणेति॥ उसको सब कुछ दायित्व सौंपकर राजा अन्य देशों को जीतने 1. 'तराव (ब, म)। 2. जिणंद (ब, म)। 3. वट्टते (ब)। 4. तस्सु (अ, म)। 5. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 3 /