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________________ पाठ-सम्पादन एवं अनुवाद ये सब एक कौड़ी का मूल्य भी प्राप्त नहीं करते हैं। 10. लोयाणं एस ठिती, अज्जय-पज्जयगता यमज्जाया। दव्वपरंपरठवणा, कुलक्कम' नेव मिल्हिस्सं॥ सामान्य लोगों की यह स्थिति है कि दादा-परदादा की जो कुलक्रम से मर्यादा चल रही है, वह द्रव्य-परम्परा कहलाती है। उस कुलक्रम की मर्यादा का भंग नहीं किया जाता। 11. मूढाणं एस ठिती, चुक्कंति जिणुत्तवयणमग्गाओ। हारेंति बोधिलाभं, आयहितं नेव जाणंति॥ मूढ़ व्यक्तियों की यह स्थिति है कि वे जिनोक्त वचन के मार्ग से भ्रष्ट होकर बोधि-लाभ को हार जाते हैं, वे आत्महित को नहीं जानते। . 12. दव्वपरंपरवंसो, संजमचुक्काण सव्वजीवाणं। भावपरंपरधम्मो, जिणिंदआणाउ' सुपसिद्धो॥ वंश रूप द्रव्य परम्परा संयमच्युत सब जीवों के होती है। धर्म रूप भाव-परम्परा जिनेन्द्र आज्ञा के रूप में प्रसिद्ध है। .. 13. दव्वपरंपर 'दुग्गो, पज्जोयणेण सिणेहराएणं / . कोसंबीइ मिगासुतवयणच्छलणाइ कारवितो॥ ... द्रव्य परम्परा में प्रद्योत का दृष्टान्त है, जिसने मृगावती के प्रति स्नेहराग के वशीभूत होकर मृगासुत नाम के बहाने कौशाम्बी नगरी का दुर्ग करवाया। . 14. देवड्डिखमासमणा, परंपरा भावतो वियाणेमि / - सिढिलायारे ठविता, दव्वेण परंपरा बहुगा॥ देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक मैं भाव-परम्परा मानता हूं। बाद में 1. 'क्कमा (ब)। 2. जिणंद (द)। 3. पज्जोअणेण दुग्गो (अ, ब, द)। . 4. रायाणं (द)। 5. कथा के विस्तार हेतु देखें परि 2, कथा सं. 2 / 6. समणं (अ, द, म)। 7. व आणेमि (हे)।
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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