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________________ आगम अद्भुत्तरी हैं। इसलिए यह सारा भाव-परम्परा युक्त तीर्थ प्रवर्तित हो रहा है। 6. सुत्तत्थकरणओ खलु, परंपरा भावतो वियाणेज्जा। सिरिजंबुसामिसिस्सा', आगमगंथाउ गहितव्वाः॥ सूत्र और अर्थ की प्ररूपणा के आधार पर भाव-परम्परा जाननी चाहिए। श्री जम्बूस्वामी की शिष्य-परम्परा आगम ग्रंथों से ग्रहण करनी चाहिए। 7. आगमं आयरंतेणं, अत्तणो हितकंखिणा। - तित्थनाहो गुरू धम्मो, सव्वे ते बहुमण्णिता॥ आगम के अनुसार आचरण करने वाले और आत्महित की इच्छा रखने वाले साधु के लिए तीर्थंकर (देव), गुरु और धर्मये सब बहुमान्य होते हैं। 8. रण्णो तणघरकरणं, सचित्तकम्मं च गामसामिस्स। दोण्हं पि दंडकरणं, 'विवरीयत्तेण उवणयओ"॥ (एक गांव में) राजा के लिए घास-फूस का घर तथा ग्रामस्वामी के लिए चित्रमय सुंदर घर बनवाया गया। विपरीत आचरण के कारण ठाकुर और ग्रामवासी दोनों को राजा ने दण्ड दिया, यह उपनय है।१० 9. आगमभट्टो मुणिवर, भूमिब्भट्ठो गयंदवरराया। धणभट्ठो ववहारी, न लहंति कवड्डियामुल्लं॥ आगमभ्रष्ट साधु, भूमिभ्रष्ट श्रेष्ठ राजा तथा धनभ्रष्ट व्यापारी 1. जंबू (म)। 9. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, 2. गहियट्ठा (अ)। कथा सं. 1 / 3. नंदी सूत्र में आचार्य पट्टावलि का विस्तार 10. जैसे राजा की अवहेलना करने पर ___ से उल्लेख है। ग्रामवासी और ठाकुर दंडित हुए, 4. कंखिणो (अ, द)। वैसे ही तीर्थंकर की आज्ञा का 5. गामि' (म, ब), "स्सा (अ)। खंडन करने वाले आचार्य और 6. दुविहं (अ, द)। साधु-ये दोनों दंडित होते हैं। 7. रीयंतेण (ब, म)। 11. भूमीभ' (म, ब)। 8. “यण्णेणुवणओ उ (ओभा 44) / 12. जहंति (म)। .
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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