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________________ आगम अट्टत्तरी आज्ञा युक्त अनुष्ठान ही पाप नाशक। चरणकरण में उपयुक्त साधु ही वास्तविक गुरु। योग्य गुरु का उपदेश ही धर्म। अर्हत् के वचनों की विराधना से दुर्लभबोधित्व की प्राप्ति। विराधक की भक्ति, प्रत्याख्यान आदि अनुष्ठान निरर्थक। आज्ञाहीन व्यक्ति को दी गई उपमाएं। .. .. कवि के प्रति गाय का प्रतिवाद। 37-39. गाय का महत्त्व। कवि के प्रति मृग का विरोध-प्रदर्शन। मृग के चर्म का महत्त्व। 42. मृग का शकुन। 43. वृक्ष का कथन। 44-46. वृक्ष से होने वाले लाभ। 47. पत्थर का प्रतिवाद। 48, 49. चिन्तामणि रत्न का महत्त्व। . 50-52. गधे द्वारा स्वयं का माहात्म्य स्थापित करना। 53-55. तृण द्वारा स्वयं का महत्त्व बताना। 56, 57. कुत्ते का प्रतिवाद एवं स्वयं की महत्ता स्थापित करना। 58-61. आज्ञा भ्रष्ट को विविध उपमाएं। 62-66. आज्ञा रहित धर्म को दी जाने वाली उपमाएं। 67. आज्ञा रहित का अनुष्ठान निरर्थक। 68, 69. मिश्रदृष्टि को उपमा। दर्शनहीन (मिथ्यात्वी) अवंदनीय। सम्यक्त्वभ्रष्ट का भवभ्रमण। 72. दर्शनभ्रष्ट की स्थिति।
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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