________________ स्वप्ने दृष्टो मयाद्य त्रिभुवनमहितः पार्श्वनाथः शिशुत्वे द्वात्रिंशद्धिः सुरेन्द्ररहमहमिकया स्नाप्यमानः सुमेरौ / तस्माद् मत्तोऽपि धन्यं नयनयुगमिदं येन साक्षात् स दृष्टो द्रष्टव्यो, यो महीयान् परिहरति भयं देहिनां संस्मृतोऽपि॥१॥ इत्यादिस्वप्नानुभूतसुखरागलिङ्गं हर्षः, तथाप्राकारत्रयतुङ्गतोरणमणिप्रेवत्प्रभाव्याहता नष्टाः क्वापि रवेः करा द्रुततरं यस्यां प्रचण्डा अपि। तां त्रैलोक्यगुरोः सुरेश्वरवतीमास्थायिकामेदिनीं हा! यावत् प्रविशामि तावदधमा निद्रा क्षयं मे गता // 1 // इत्यादिकः स्वप्नानुभूतदुःखद्वेषलिङ्ग विषादः, अत्यन्तकामोद्रेकादिलिङ्गमुन्मादः, मुनेस्तु माध्यस्थ्यम्, इति "विबुद्धस्याऽनुग्रहोपघातानुपलम्भात्" इत्यसिद्धो हेतुः॥ इति गाथार्थः // 226 // अत्रोत्तरमाह "स्वप्न में मैंने देखा कि त्रैलोक्यपूज्य (जिनेन्द्र तीर्थंकर) पार्श्वनाथ शिशु अवस्था में हैं और सुमेरु पर्वत पर उन्हें 32 देवेन्द्र 'अहमहमिका' (मैं पहले, मैं पहले -इत्यादि स्पर्द्धा) के साथ नहला रहे थे। "इसलिए मुझ से भी (अधिक) धन्य मेरे दोनों नेत्र हैं जिन्होंने उन दर्शनीय (जिनेन्द्र) का साक्षात् दर्शन किया। वे (जिनेन्द्र) इतने अधिक महान् हैं कि प्राणियों द्वारा मात्र स्मरण किये जाने पर भी (प्राणियों) के भय को दूर करते हैं।' इत्यादि स्वप्न में अनुभूत सुख के प्रति राग का चिन्ह हर्ष है। और- "(अहा!) त्रैलोक्यगुरु (तीर्थंकर) की सभा-भूमि (समवसरणभूमि का क्या कहना)! जिसके तीन ‘प्राकार' (प्राचीर, विस्तृत दालान) के उच्च तोरणों में लगी मणियों की प्रभा से टकरा कर सूर्य की प्रचण्ड किरणें भी तुरन्त (न जाने) कहां नष्ट (हतप्रभ, प्रभाहीन, निष्प्रभाव) हो जाती हैं, और जहां (श्रोता व सेवक रूप में) देवेन्द्र भी स्थित हैं, उस (सभाभूमि) में मैं ज्यों ही प्रविष्ट हो रहा था, तभी मेरी अधम निद्रा (अकस्मात्) टूट गई!" _ इत्यादि स्वप्न में अनुभूत दुःख के प्रति होने वाले द्वेष का चिन्ह विषाद (उत्पन्न होता) है। (इसी तरह) अत्यन्त काम-उद्रेक आदि का चिन्ह उन्माद (भी होता) है, किन्तु मुनि (की भूमिका में स्थित) को मध्यस्थता (वीतरागता) आदि (के भाव) होते हैं। इसलिए 'जागने पर अनुग्रह व उपघात - उपलब्ध नहीं होते' -यह हेतु असिद्ध हो जाता है| यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 226 // अब (उपर्युक्त) पूर्वपक्ष द्वारा किये गये दोषारोपण का (भाष्यकार) उत्तर दे रहे हैं ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 333 र