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________________ आवश्यक नियुक्तिः _ आवश्यक सूत्र पर सर्वाधिक प्राचीन व्याख्या है- आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) द्वारा प्राकृत भाषा में पद्यमय रचित आवश्यकनियुक्ति। इसका समय लगभग विक्रम 5-6 शती है। ग्रन्थ का विशेष विवरण आगे दिया जा जाएगा। विशेषावश्यक भाष्य : आचार्य जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण (विक्रम 6-7वीं शती) द्वारा रचित प्राकृत भाषा में रचित पद्यात्मक व्याख्या है जिसे 'विशेषावश्यक भाष्य' कहा जाता है। विस्तृत विवरण आगे दिया जा रहा है। आवश्यकचूर्णि: आवश्यक सूत्र पर जिनदास गणि महत्तर (वि. सं. 650-750) ने चूर्णि लिखी है। यह चूर्णि आवश्यक नियुक्ति के अनुरूप है अर्थात् नियुक्ति का प्रमुखतः अनुसरण करते हुए लिखी गई है और यत्र-तत्र भाष्य गाथाओं का भी व्याख्यान किया गया है। भाषा प्रधानतः प्राकृत है, किन्तु गौण रूप से संस्कृत भी कहीं-कहीं प्रयुक्त हुई है। भाषा में प्रवाह व ओज है। इसमें गूढ व कठिन विषयों को कथाओं के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है, अत: अनेक ऐतिहासिक व लोक-कथाओं का समावेश भी हुआ है। तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक व भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी इस कृति से होती है। आवश्यक वृत्ति आदि टीकाएं : आ. जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण ने अपनी कृति विशेषावश्यक भाष्य पर स्वोपज्ञ वृत्ति भी लिखी थी, किन्तु वह छठे गणधरवाद तक ही लिखी गई, अतः वह अपूर्ण रह गई। इसे कोट्याचार्य (वि. 8 वीं शती) ने पूर्ण किया। यह वृत्ति सरल, स्पष्ट व संक्षिप्त है। आचार्य मलयगिरि (12वीं शती) ने आवश्यक विवरण' नामक वृत्ति की रचना की है। वस्तुतः यह मूल सूत्र पर न होकर आवश्यकनियुक्ति पर है। यत्र-तत्र विशेषावश्यक भाष्य की गाथाओं को उद्धृत किया गया है। यत्र-तत्र प्राकृत कथानकों का भी आश्रय लिया गया है। आवश्यक सूत्र के द्वितीय अध्ययन तक ही यह विवरण प्राप्त है और वह भी अपूर्ण रूप से। इसका प्रमाण 18 श्लोक माना जाता है। आचार्य हरिभद्र (ई. 8वीं शती) ने भी आवश्यक सूत्र पर तो नहीं, किन्तु आवश्यक नियुक्ति पर एक वृत्ति लिखी है। इसमें आवश्यक चूर्णि का अनुसरण न करते हुए स्वतंत्र रूप से विषय-विवेचना की गई है। इसी वृत्ति में यह भी संकेत मिलता है कि आचार्य हरिभद्र ने आवश्यकसूत्र पर एक बृहत् टीका भी लिखी थी, किन्तु यह अनुपलब्ध है। नियुक्ति के पाठान्तरों का भी इसमें निर्देश किया गया है। यह वृत्ति संस्कृत में है, किन्तु दृष्टान्त व कथानक प्राकृत में ही दिये गये हैं। इस वृत्ति का प्रमाण 22 हजार श्लोक माना जाता है। आचार्य मलधारी हेमचंद्र (12 वीं शती) ने आवश्यक-नियुक्ति व विशेषावश्यक भाष्य पर शिष्यहिता नामक एक बृहवृत्ति की रचना संस्कृत में की है। इसका विशेष परिचय आगे दिया जाएगा। इन्हीं आचार्य ने आवश्यक सूत्र पर (वस्तुतः हरिभद्र-रचित आवश्यक-वृत्ति पर) पृथक् रूप से टिप्पण भी लिखा और कठिन RORSCRORRORROR [33] ROORBOORB0SROR
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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