________________ अत्रोच्यते पावंति सद्द-गन्धा ताई गंतुं सयं न गिण्हन्ति। जंते पोग्गलमइया सक्किरिया वाउवहणाओ॥२०६॥ धूमो व्व, संहरणओ दाराणुविहाणओ विसेसेणं॥ तोयं व नियंबाइसु पडिघायाओ य वाउ व्व॥२०७॥ [संस्कृतच्छाया:- प्राप्तुतः शब्दगन्धौ ते गत्वा स्वयं न गृह्णीतः। यत् तौ पुद्गलमयौ सक्रियौ वायुवहनात् // धूम इव, संहरणतो द्वारानुविधानतो विशेषेण। तोय इव नितम्बादिषु प्रतिघाताच्च वायुरिव॥] 'पार्वति सद्द-गन्धा ताई ति' शब्द-गन्धौ कर्तृभूतौ, ते श्रोत्र-घ्राणेन्द्रिये कर्मतापन्ने, अन्यत आगत्य प्राप्नुतः स्पृशत इति प्रतिज्ञा। अनभिमतप्रकारप्रतिषेधमाह- 'गंतुं सयं न गिर्हति त्ति'। 'ताई' इत्यत्रापि संबध्यते। ततश्च ते श्रोत्र-घ्राणे कर्तृभूते पुनः स्वयं शब्द-गन्धदेशं गत्वा न गृह्णीतः। 'शब्द-गन्धौ' इति विभक्तिव्यत्ययेन संबध्येते, आत्मनोऽबाह्यकरणत्वात् श्रोत्र-घ्राणयोः, स्पर्शनरसनवदिति। उपर्युक्त विषय में (भाष्यकार उत्तर रूप में) कह रहे हैं // 206 // पावति सद्द-गन्धा ताइं गंतुं सयं न गिण्हन्ति। जं ते पोग्गलमइया सक्किरिया वाउवहणाओ // // 207 // धूमो ब्व, संहरणओ दाराणुविहाणओ विसेसेणं॥ तोयं व नियंबाइसु पडिघायाओ य वाउ व्व // . [(गाथा-अर्थ :) शब्द व गन्ध (स्वयं) ही (आकर श्रोत्र व घ्राण इन्द्रिय को) प्राप्त (स्पृष्ट) करते हैं। ये (इन्द्रियां) स्वयं जाकर (शब्द व गन्ध को) ग्रहण नहीं करतीं, क्योंकि वे (शब्द व गन्ध) पौद्गलिक और (साथ ही साथ) सक्रिय उसी तरह हो जाते हैं, जिस प्रकार कोई धूंआ वायु से नीयमान तथा किसी एक घर में पिण्डीभूत (घनीभूत) हो जाता है, या फिर जिस प्रकार पानी विशेष 'द्वारानुविधान' से (निकास-मार्ग के अनुरूप गमन करता हुआ) सहज (प्रवाहित होता रहता एवं) सक्रिय होता है, या वायु पर्वत के निचले भाग से टकराकर (प्रतिस्खलित, गति की दिशा बदलते हुए) सक्रिय होता है।] व्याख्याः- (प्राप्नुतः शब्दगन्धौ ते)। 'प्राप्त करते हैं' इस क्रिया- वचन में शब्द व गन्ध कर्ता हैं और व घ्राण इन्द्रिय कर्म (प्राप्त करने योग्य) हैं। इस प्रकार (भाष्यकार द्वारा प्रस्तुत) पक्ष इस प्रकार है- (शब्द व गन्ध ही श्रोत्र व घ्राण इन्द्रिय को) अन्य देश से आकर प्राप्त करते हैं। अस्वीकार्य मत (पक्ष) का निराकरण करने हेतु कह रहे हैं- (गत्वा स्वयं न गृह्णीतः)। यहां भी (ते) 'वे' इस पद का सम्बन्ध करणीय है। अतः अर्थ होगा- वे (दोनों-श्रोत्र व घ्राण इन्द्रिय) (शब्द व गन्ध के पास) ---------- विशेषावश्यक भाष्य ---- ---- 301