________________ एवं तदभ्युपगमः शोभन इति चेत्। नैवमित्याह- 'दिटुंतोऽयमित्यादि'। अयं वल्कशुम्बदृष्टान्तो यथा तैरुपनीत:उक्तप्रकारेण प्रकृते योजितः, तथा युक्तिं न सहते- न क्षमते, अन्यथा त्वस्मदभिमतवक्ष्यमाणप्रकारेणोपनीयमान एषोऽपि युक्तिक्षमो भविष्यतीति भावः // इति गाथार्थः॥१५४॥ कुतो न संसहते? इत्याह भावसुयाभावाओ संकरओ निव्विसेसभावाओ। पुव्वुत्तलक्खणाओ सलक्खणावरणभेयाओ॥१५५॥ [संस्कृतच्छाया:- भावश्रुताभावात् संकरतो निर्विशेषभावात्। पूर्वोक्तलक्षणात् स्वलक्षणावरणभेदात् // ] नैष दृष्टान्तो युक्तिं क्षमत इति सर्वत्र साध्यम्, मतेरनन्तरं शब्दमात्रस्यैव भावेन भावश्रुतस्याऽभावप्रसङ्गात् / अथ मतिसहितोऽयं शब्दो न केवल इति तत्र भावश्रुतत्वं भविष्यति / तदयुक्तम् / कुतः? इत्याह- संकरः सांकर्यं, संकीर्णत्वम्, मिश्रत्वमिति यावत्, मतिश्रुतयोस्तस्य प्राप्तेः। निर्विशेषभावाद् वा-यदेव मतिज्ञानम्, तदेव भावश्रुतमिति प्रतिपादनादेकमेव किञ्चित् स्यात्, नोभयमिति भावः। अस्तु विशेषाभाव इति चेद् / नैवम् / कुतः? इत्याह- स्वलक्षणावरणभेदात्। कथंभूतात्? इत्याह- पूर्वोक्तलक्षणात् 'किह व सुर्य होइ मई सलक्खणावरणभेयाओ' इति पूर्वाभिहितगाथावयवोक्तस्वरूपात्। (प्रश्न-) क्या उनकी यह मान्यता समीचीन है? उत्तर दिया- नहीं समीचीन है- (दृष्टान्तोऽयम्)। वल्क और शुम्ब सम्बन्धी यह दृष्टान्त जिस तरह उनके द्वारा रखा गया है, अर्थात् प्रकृत विषय से जोड़ कर प्रस्तुत किया है, वह युक्ति (की कसौटी) पर ठहर नहीं पाता। हां, हम जैसा चाहते हैं, उस (आगे) कहे जाने वाले प्रकार से, यह दृष्टान्त भी युक्तिसंगत सिद्ध हो सकेगा- यह तात्पर्य है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 154 // उक्त दृष्टान्त क्यों नहीं युक्तिसंगत ठहरता? इस प्रश्न के उत्तर में कह रहे हैं (155) भावसुयाभावाओ संकरओ निव्विसेसभावाओ। पुव्वुत्तलक्खणाओ सलक्खणावरणभेयाओ || [(गाथा-अर्थः) भावश्रुत का अभाव, सांकर्य दोष, दोनों में भेद समाप्त होना, पूर्वोक्तलक्षण वाले स्वकीय आवरण सम्बन्धी भेद का होना- इन सब कारणों से (उक्त दृष्टान्त युक्तिसंगत नहीं ठहरता)।] व्याख्याः - (गाथा में आए ‘भावश्रुत-अभाव' आदि अनेक हेतु दिए गए हैं, उनमें प्रत्येक हेतु के साथ, पूर्व गाथा में आया) 'यह दृष्टान्त युक्तियुक्त नहीं ठहरता' यह कथन सर्वत्र (जोड़ना चाहिए, क्योंकि यही प्रत्येक हेतु द्वारा प्रतिपादित किया जाने वाला) साध्य है। (भावश्रुताभावात्-) मति के बाद शब्दमात्र के ही सद्भाव मानने से भावश्रुत के अभाव का प्रसंग (संकट) आ जाएगा। (इसलिए उक्त दृष्टान्त युक्तियुक्त नहीं ठहरता)। (शंकाकार-) केवल शब्द को नहीं, किन्तु मतिसहित शब्द को भावश्रुत मान लेंगे (तब तो उक्त आपत्ति नहीं होगी)। (उत्तर-) यह भी युक्तियुक्त नहीं है। (प्रश्न-) क्यों? ----- विशेषावश्यक भाष्य --------233 E