________________ तदेवं 'सोइंदिओवलद्धी होइ सुर्य' इत्यादिमूलगाथाया तत्त्वतः श्रोत्रेन्द्रियविषयमेव श्रुतज्ञानम्, सर्वेन्द्रियविषयं च मतिज्ञानमित्येवं मति-श्रुतयोर्भेदः प्रतिपादितः, तत्प्रतिपादनक्रमे च 'बुद्धिद्दिढे अत्थे जे भासइ' इत्यादिगाथा समायाता, सा च द्रव्यभावोभयश्रुतरूपाऽभिधायकत्वेन मतिश्रुतयोर्भेदाभिधानपरतया च व्याख्याता, तद्व्याख्याने चाऽवसिते इन्द्रियविभागादपि मति-श्रुतयोर्भेदः। सांप्रतं वल्क-शुम्बोदाहरणात् तमभिधित्सुराह अन्ने मन्नंति मई वग्गसमा सुंबसरिसयं सुत्तं / दिट्ठन्तोऽयं जुत्तिं जहोवणीओ न संसहइ॥१५४॥ [संस्कृतच्छाया:- अन्ये मन्यन्ते मतिर्वल्कसमा शुम्बसदृशं श्रुतम् / दृष्टान्तोऽयं युक्तिं यथोपनीतौ न संसहते॥] अन्ये केचनाऽप्याचार्या मन्यन्ते। किम्?, इत्याह-वल्कसमा वल्कसदृशी मतिः, ततः सैव यदा शब्दतया संदर्भिता भवतितज्जनितो यदा शब्द उत्तिष्ठतीत्यर्थः, तदा तदुत्थशब्दसहिता श्रुतमुच्यते, तच्च शुम्बसदृशं वल्कजनितदवरिकातुल्यं श्रुतं भवति। इस प्रकार 'श्रोत्रेन्द्रियोपलब्धि श्रुत होती है' इत्यादि (117वीं) मूल गाथा द्वारा प्रतिपादित किया गया कि तात्त्विक (वास्तविक) रूप से श्रोत्रेन्द्रियविषय ही श्रुतज्ञान है, किन्तु मतिज्ञान सर्वेन्द्रियविषय है, इस प्रकार मति व श्रुत में भेद या अन्तर होता है। इसी तथ्य के प्रतिपादन के प्रसंग में (128वीं) 'बुद्धिदृष्ट' इत्यादि गाथा आई, उसका भी व्याख्यान करते हुए बताया गया कि द्रव्यश्रुत, भावश्रुत व उभयश्रुत के कथन के साथ-साथ यह गाथा मति व श्रुत में भेद का प्रतिपादन करती है। इस व्याख्यान के समाप्ति में यह प्रतिपादित किया कि इन्द्रिय-विभाग के आधार पर भी मति व श्रुत में भेद है। (मति व श्रुत में वल्क व शुम्ब का दृष्टान्त) अब वल्क-शुम्ब के उदाहरण के माध्यम से मति व श्रुत में भेद का कथन कर रहे हैं (154) अन्ने मन्नंति मई वग्गसमा सुंबसरिसयं सुत्तं / दिट्ठन्तोऽयं जुत्तिं जहोवणीओ न संसहइ॥ [(गाथा-अर्थः) अन्य (आचार्य, विद्वान्) मति को वल्क (छाल) के समान तथा श्रुत (या सूत्र) को शुम्ब (दरी, गूंथी हुई छाल आदि) मानते हैं। (किन्तु) इस दृष्टान्त को जिस प्रकार वे रखते हैं, वह युक्तिसंगत नहीं ठहरता।] व्याख्याः - अन्य कोई-कोई आचार्य (ऐसा) मानते हैं। क्या मानते हैं? वल्क के समान, वल्क जैसी मति होती है, वही जब शब्द से संदर्भित (मिश्रित) हो जाती है, अर्थात् जब उससे शब्द उत्पन्न/प्रकट होता है, उस उत्पन्न शब्द के साथ जब मति होती है, तब 'श्रुत' कहलाती है। वह श्रुत ऐसा * ही है जैसे शुम्ब हो, यानी जैसे वल्क से बनी कोई दवरिका (दरी, चादर आदि) हो। a 232 -------- विशेषावश्यक भाष्य ---- ----