________________ तदेवं व्याख्याताऽस्माभिरियं गाथा, सांप्रतं भाष्यकारस्तद्व्याख्यानमाह जे सुयबुद्धिढेि सुयमइसहिओ पभासई भावे। तं उभयसुयं भन्नइ दव्वसुयं जे अनुवउत्तो॥१२९॥ [संस्कृतच्छाया:- यान् श्रुतबुद्धिदृष्टे श्रुतमतिसहितः प्रभाषते भावान् / तद् उभयश्रुतं भण्यते द्रव्यश्रुतं चानुपयुक्तः॥] गतार्थेव, नवरं सुखार्थं किञ्चिद् व्याख्यायते-श्रुतरूपा यका बुद्धिस्तया दृष्टाः पर्यालोचिता ये भावास्तन्मध्याद् 'मईसहियं' इत्यस्य तात्पर्यव्याख्यानमाह- श्रुतात्मकमतिसहितः श्रुतोपयुक्त इति यावत्, यान् भावान् प्रभाषते तद् द्रव्य-भावरूपमुभयश्रुतं भण्यते। यान् पुनरनुपयुक्तो भाषते तद् द्रव्यश्रुतं शब्दमात्रमेवेत्यर्थः / यांस्तु श्रुतबुद्ध्या पर्यालोचयत्येव केवलं, न तु भाषते, तद् भावश्रुतमित्यर्थाद् गम्यते // इति गाथार्थः॥१२९॥ उपयोगरहित होकर बोल पाए तो। किन्तु ऐसा हो नहीं पाता। क्योंकि श्रुतोपलब्धि से गृहीत पदार्थ तो अनन्त होते हैं, और वाणी की क्रम से ही (वर्णन करने में) प्रवृत्ति हो पाती है, जब कि आयु सीमित ही है। इसलिए, वक्ता अपना सम्पूर्ण जीवन भी लगावे, तब भी, श्रुतोपलब्धि से गृहीत-उपलब्ध पदार्थों के अनन्तवें भाग को ही बोल पाता है, अतः उस (अनन्तवें भाग) में ही उपयोगरहित बोले तो द्रव्यश्रुत, और उपयोगसहित बोले तो उभयश्रुतरूप होगा, अन्यत्र (ये दोनों श्रुत) नहीं होते, क्योंकि (उन सब का) भाषण ही असम्भव है। यह पूर्वोक्त गाथा का (अन्यसमर्पित) व्याख्यान पूर्ण हुआ // 128 // . इस प्रकार हमने इस गाथा का व्याख्यान किया है। अब भाष्यकार, पूर्वोक्त (117 वीं) गाथा का स्वयंकृत व्याख्यान प्रस्तुत कर रहे हैं (129) जे सुयबुद्धिद्दिढे सुयमइसहिओ पभासई भावे। तं उभयसुयं भन्नइ दव्वसुयं जे अनुवउत्तो // [(गाथा-अर्थः) श्रुत-बुद्धि में दृष्ट पदार्थों में से श्रुतात्मक मति के साथ जिन भावों को वक्ता कहता है, वह उभयश्रुतात्मक होता है, इनमें जो उपयोगरहित होकर बोलता है, वह द्रव्यश्रुत है।] ..व्याख्याः- गाथा का अर्थ स्वतः स्पष्ट है। फिर भी कुछ व्याख्या की जा रही है- श्रुतरूप जो बुद्धि है, उसके द्वारा दृष्ट यानी पर्यालोचित जो पदार्थ होते हैं, उनमें से ही, ‘मतिसहित' होते हुएइसका तात्पर्यरूप व्याख्यान करते हुए कह रहे हैं- श्रुतमतिसहित। अर्थात् श्रुतोपयोग के साथजिन पदार्थों को वक्ता बोलता है, वह द्रव्यश्रुत व भावश्रुत दोनों रूप होता है। जिन्हें उपयोग रहित होकर बोलता है, वह शब्दमात्र होने से द्रव्यश्रुत है, और जिन्हें श्रुत-बुद्धि से केवल पर्यालोचित ही करता है, बोलता नहीं, वह भावश्रुत है- यह अर्थतः (अर्थ-संगति के आधार पर) ज्ञात होता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 129 // --- ----- विशेषावश्यक भाष्य ---- ---- 203