________________ परमार्थतस्तर्हि किं श्रुतम्?, इत्याह- 'सुयं त्वित्यादि' परमार्थतस्तु जीवः श्रुतम्, ज्ञान-ज्ञानिनोरनन्यभूतत्वात्। तथा च पूर्वमभिहितम्- शृणोतीति श्रुतमात्मैवेति। तस्मात् श्रूयत इति श्रुतमिति कर्मसाधनपक्षे द्रव्यश्रुतमेवाभिधीयते, शृणोतीति श्रुतमिति, कर्तृसाधनपक्षे तु भावश्रुतमात्मैव, इति न काचिदनात्मभावता श्रुतज्ञानस्य ॥इति गाथार्थः॥१९॥ अथ प्रकारान्तरेणापि मति-श्रुतयोर्लक्षणभेदमाह इंदिय-मणोनिमित्तं जं विण्णाणं सुयाणुसारेणं। निययत्थुत्तिसमत्थं तं भावसुयं मई सेसं // 100 // [संस्कृतच्छाया:- इन्द्रियमनोनिमित्तं यद् विज्ञानं श्रुतानुसारेण / निजकार्योक्तिसमर्थं तद् भावश्रुतं मतिः शेषम्॥] इन्द्रियाणि च स्पर्शनादीनि मनश्च, इन्द्रिय-मनांसि, तानि निमित्तं यस्य तदिन्द्रियमनोनिमित्तम्, इन्द्रिय-मनोद्वारेण यद् विज्ञानमुपजायत इत्यर्थः। आदि करते समय, वक्ता द्वारा बोले जाने वाले शब्द का कारण होता है- इसलिए श्रुतज्ञान के कारणभूत या कार्यभूत उस शब्द में 'श्रुत' का उपचार किया जाता है। इसलिए, परमार्थ रूप से शब्द 'श्रुत' नहीं है, मात्र उपचार से ही है, अतः कोई दोष नहीं। (प्रश्न-) तो परमार्थ से 'श्रुत' क्या है? (उत्तर रूप में) कहा- (श्रुतं तु-) परमार्थ से तो जीव ही श्रुत है, क्योंकि ज्ञान व ज्ञानी में अनन्यता (तदात्मता, अभिन्नता) है। जैसा कि पहले भी कहा गया हैजो सुनता है, वह आत्मा ही श्रुत है। इसलिए जब 'जो सुना जाय, वह श्रुत है' –यह कर्मपरक अर्थ करते हैं तो वहां 'द्रव्यश्रुत' का कथन किया गया जानना। जो सुनता है, वह श्रुत है' इस कर्तृसाधनता की विवक्षा में (श्रुत शब्द से) भावश्रुत रूप आत्मा ही अभिहित होता है। इस प्रकार श्रुतज्ञान की कोई अनात्मपरिणामता (आत्म-परिणाम न होने की आपत्ति) नहीं है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 19 // अब भाष्यकार अन्य प्रकार से भी मति व श्रुत के लक्षण-भेद (यानी दोनों के भिन्न-भिन्न लक्षण) को बता रहे हैं (100) इंदिय-मणोनिमित्तं जं विण्णाणं सुयाणुसारेणं / निययत्थुत्तिसमत्थं तं भावसुयं मई सेसं || [(गाथा-अर्थः) (घटादि शब्द रूप) श्रुत का अनुसरण कर इन्द्रिय व मन से उत्पन्न होने वाला विज्ञान- जिसमें अपने में निहित अर्थ को कहने की सामर्थ्य होती है, वह- भावश्रुत है, शेष मति ज्ञान है। व्याख्याः- स्पर्श आदि (पांच इन्द्रियां),और मन, ये जिस ज्ञान में निमित्त हैं, वह इन्द्रियमनोनिमित्तक ज्ञान है, वह ज्ञान इन्द्रिय व मन के द्वारा उत्पन्न होता है -यह तात्पर्य है। ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 157 ol