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________________ अङ्गीक्रियतां तर्हि तन्मतमित्याह- 'तन्नो इत्यादि' तदेतद् वैशेषिकादिमतं न युक्तम्, यतस्तानीन्द्रियाण्यचेतनानि, ततश्च न जानन्ति न वस्तुस्वरूपमुपलभन्ते, घटवत्। तथाहि- यदचेतनं तत् सर्वमपि न जानाति, यथा घटादि, अचेतनानि चेन्द्रियाणि, इति / कुतस्तेषामुपलब्धिः? या प्रत्यक्षं स्यादिति भावः। तथा इन्द्रियाणां ज्ञानशून्यत्वे मूर्तिमत्त्व-स्पर्शादिमत्त्वादयोऽपि हेतवो वाच्याः॥ इति गाथार्थः॥९१ // नन्विन्द्रियाणि न जानन्ति, इति प्रत्यक्षविरोधिनी प्रतिज्ञा, तेषां साक्षात्कारेणाऽर्थोपलब्धेरनुभवप्रत्यक्षेण प्रतिप्राणि प्रसिद्धत्वात्, इत्याशङ्क्याह उवलद्धा तत्थाऽऽया तव्विगमे तदुवलद्धसरणाओ। गेहगवक्खोवरमे वि तदुवलद्धाऽणुसरिया वा // 12 // [संस्कृतच्छाया:- उपलब्धा तत्राऽऽत्मा तद्विगमे तदुपलब्धस्मरणात्। गेहगवाक्षोपरमेऽपि तदुपलब्धाऽनुस्मर्ता वा (इव)॥] 'तत्थ त्ति' तत्र चक्षुरादीन्द्रिये करणतया व्याप्रियमाणे उपलब्धा वस्तूनां बोद्धा आत्मैव द्रष्टव्यः, न त्विन्द्रियम्। कुतः?; इत्याह- 'तव्विगमेत्यादि / तस्य चक्षुरादीन्द्रियस्य विगमेऽभावेऽपीत्यर्थः, तदुपलब्धस्य पराभ्युपगमेनेन्द्रियोपलब्धस्याऽर्थस्य स्मरणात्। . तब फिर उनके मत को स्वीकार कर (मान) लिया जाय? इसके उत्तर में कहा- (तन्न)। यह जो वैशेषिक आदि दर्शनों का मत है, वह युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि वे इन्द्रियां तो अचेतन हैं, इसलिए वे 'घट' की तरह (किसी भी) वस्तु के स्वरूप को जानती नहीं। जैसे कि जो-जो अचेतन हैं, वे सभी नहीं जानते हैं, जैसे घट आदि। इन्द्रियां भी अचेतन हैं, तो उन्हें भी पदार्थ-उपलब्धि (बोध) का होना कैसे सम्भव हो सकता है? जब कोई ऐसी उपलब्धि ही नहीं, तो उसे प्रत्यक्ष कहना भी युक्तिसंगत नहीं -यह तात्पर्य है। इसी प्रकार, मूर्तिमत्ता, स्पर्शादियुक्तता आदि को भी इन्द्रियों की ज्ञानशून्यता का हेतु (आधार) बताया जा सकता है | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 11 // इन्द्रियां नहीं जानतीं- यह आपकी प्रतिज्ञा तो प्रत्यक्ष-विरुद्ध है। प्रत्येक प्राणी को इन्द्रियों के माध्यम से पदार्थों का साक्षात्कार कर अर्थोपलब्धि होती है- यह अनुभवप्रत्यक्षं होने से प्रसिद्ध हैइस शंका को मन में रखकर भाष्यकार कहते हैं (92) उवलद्धा तत्थाऽऽया तविगमे तदुवलद्धसरणाओ। गेहगवक्खोवरमे वि तदुवलद्धाऽणुसरिया वा // [(गाथा-अर्थः) जैसे घर के गवाक्ष (झरोखे) से देखे पदार्थ का स्मरण, उस गवाक्ष के समाप्त (हटने या बन्द) होने के बाद भी, पूर्वदर्शक को होता है, उसी तरह इन्द्रियों से उत्पन्न हुए ज्ञान को आत्मा इन्द्रियों के अभाव में भी याद कर सकता है (अतः वस्तुतः आत्मा ही ज्ञाता है, इन्द्रियां नहीं)] व्याख्याः- (तत्र आत्मा इति)- चक्षु आदि इन्द्रियां तो करण (यानी प्रमुख साधन) के रूप में व्यापाररत होती हैं, किन्तु वस्तुओं का ज्ञाता तो आत्मा ही है- ऐसा समझना चाहिए, इन्द्रिय को ज्ञाता a 142 -------- विशेषावश्यक भाष्य -----
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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