________________ भावनन्द्यपि द्विधा- आगमतः, नोआगमतश्च। आगमतो नन्दिपदार्थज्ञस्तत्रोपयुक्तः। नोआगमतस्त्वाह- 'भावम्मि येत्यादि। भावे भावनन्द्यां विचार्यमाणायां पुनः 'नोआगमतो भावनन्दी' इति शेषः। का पुनरियम्?, इत्याह- पञ्च ज्ञानानि। आगमस्य ज्ञानपञ्चकैकदेशत्वात् नोशब्दस्य चेहाप्येकदेशवाचित्वादिति भावः / इयमेव चेह नोआगमतो भावमङ्गलत्वेन प्रस्तुतगाथादौ निर्दिष्टा // इति गाथार्थः॥७८ // कानि पुनस्तानि पञ्च ज्ञानानि?, इत्याह[नियुक्ति-गाथाः (1)] आभिणिबोहियनाणंसुयनाणंचेव ओहिनाणंच। तहमणपज्जवनाणं केवलनाणंच पंचमयं // 79 // [संस्कृतच्छाया:- आभिनिबोधिकज्ञानं श्रुतज्ञानं चैवावधिज्ञानं च। तथा मनःपर्ययज्ञानं केवलज्ञानं च पञ्चमकम्॥] भावनन्दी भी दो प्रकार की है- (1) आगम से, और (2) नो- आगम से / आगम से भावनन्दी है- नन्दी पदार्थ का ज्ञाता और तत्सम्बन्धी उपयोग से युक्त व्यक्ति। नो आगम से भावनन्दी का निरूपण करने हेतु कहा- भाव (नन्दी) में (पांच ज्ञान हैं)। भाव में यानी विचारणीय भाव नन्दी में, यहां (प्रसंग के औचित्य की दृष्टि से) 'नो आगम से भावनन्दी'- यह पद जोड़ना चाहिए। वह (नो आगम से भावनन्दी) क्या है? (उत्तर-) पांच ज्ञान (नो-आगम से भावनन्दी) हैं। 'नो' शब्द एकदेशवाची है। चूंकि आगम (श्रुत ज्ञान) पांच ज्ञानों के एकदेश (अंश) हैं, इसलिए पांच ज्ञानों का निरूपण करने वाली नन्दी- 'नो आगम से भावनन्दी' है, इसी का निरूपण आगे की गाथा (नियुक्ति) में किया गया है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 78 // [ज्ञान-पंचक] वे पांच ज्ञान कौन से हैं? इसके समाधान हेतु (नियुक्तिकार) कह रहे हैं 79 // आभिणिबोहियनाणं, सुयनाणं चेव ओहिनाणं च / तह मणपज्जवनाणं, केवलनाणं च पंचमयं // 1 // [(गाथा-अर्थः) आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधि ज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान और पांचवां केवलज्ञान है। Mar 124-------- विशेषावश्यक भाष्य ----