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________________ 'नंदी'नन्दनं नन्दी, नन्दन्ति समृद्धिमवाप्नुवन्ति भव्यप्राणिनोऽनयेति वा नन्दी, इयं च सूत्रे सामान्योक्तावपि व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तेरिह ज्ञानपञ्चकरूपा गृह्यते। सामान्यरूपेण तु चिन्त्यमानाऽसौ मङ्गलवद् नामादिचतुर्विधा भवति। एतदेवाह- 'चउव्विहेत्यादि'। तत्र 'नन्दी' इति यत् कस्यचिद् नाम क्रियते सा नामनन्दी। अक्षादिषु स्थापिता स्थापनानन्दी। द्रव्यनन्दी तु द्विविधाआगमतः, नोआगमतश्च / तत्राऽऽगमतो नन्दीपदार्थज्ञोऽनुपयुक्तः, नोआगमतस्तु ज्ञ-भव्यशरीर-उभयव्यतिरिक्ता द्रव्यनन्दी द्वादशप्रकारस्तूर्यसमुदयः, तद्यथा "भंभा-मुगुन्द-मद्दल-कडंब-झल्लरि-हुडुक्क-कंसाला। काहल-तलिमा वंसो संखो पणवो य बारसमो"॥ [भम्भा-मुकुन्द-मर्दल-कडम्ब-झल्लरी-हुडुक्क-कंसालाः। काहल-तलिमौ वंशः शंखः पणवश्च द्वादशः॥] इह च 'दव्वे तूरसमुदओ' इत्यनेन ज्ञ-भव्यशरीरव्यतिरिक्ता द्रव्यनन्दी सूत्रेऽपि दर्शिता, नामनन्द्यादिस्वरूपं तु पूर्वोक्तनाममङ्गलाद्यनुसारेण सुज्ञेयत्वाद् नोक्तमिति। शब्द पूर्वोक्त तीन पक्षों से अन्य विकल्प का वाचक है, जिससे (फलित) अर्थ इस प्रकार होगाअथवा 'नोआगम से भावमङ्गल' (पूर्वोक्त पक्षों से पृथक) अन्य भी है, वह क्या है? इस शंका के समाधान हेतु कहा- नन्दी। जो नन्दन (समृद्धिदायक) है वह 'नन्दी' होती है, अथवा जिससे भव्य प्राणी संवर्द्धित होते हैं, समृद्धि प्राप्त करते हैं- वह (भी) नन्दी है। यद्यपि 'नन्दी' का सूत्र में सामान्य रूप से कथन कर भी दिया गया है, तथापि 'व्याख्यान से विशेष का ज्ञान होता है' इस उक्ति के अनुसार, नन्दी शब्द से पांच ज्ञानों का ग्रहण किया जाना चाहिए। सामान्य रूप से विचार करें तो नन्दी भी 'मङ्गल' की तरह (नामनन्दी आदि भेदों से) चार प्रकार की है, इसी बात को 'चतुर्विधा' आदि कथन से कहा गया है। - इनमें जिस किसी का 'नन्दी' यह नाम रख दिया जाय, वह 'नामनन्दी' है। मोहरे, पाशे आदि में स्थापित 'स्थापनानन्दी' है। द्रव्यनन्दी तो दो प्रकार की है- (1) आगम से, और (2) नो आगम से। उनमें 'आगम से (द्रव्य) नन्दी' है- नन्दीपदार्थ का ज्ञाता, तत्सम्बन्धी उपयोग से रहित व्यक्ति। इसी प्रकार 'नो आगम से द्रव्यनन्दी' है- (नन्दी पदार्थ के) ज्ञाता का शरीर, तथा भविष्य में ज्ञाता होने वाला बालक। इन दोनों से अतिरिक्त द्रव्यनन्दी है- बारह प्रकार के वाद्यों का समूह जो निम्नलिखित रूप में इस प्रकार कहे गए हैं भंभा (वाद्य-विशेष), मुकुन्द (ढोल), मर्दल (विशेष प्रकार का ढोल), कडम्ब (वाद्यविशेष) झल्लरी (झांझ), हुडुक्क (छोटे आकार का ढोल), कंसाल (झांझ, करताल), काहल (बड़ा ढोल), तलिम (ताल वाद्य), वंश (बांसुरी), और बारहवां पणव (वाद्यविशेष)। - द्रव्य (नन्दी) में तूर्यों (वाद्यों) का समुदाय- इस कथन से यह संकेत किया गया है कि ज्ञाता व भव्य शरीर से पृथक् द्रव्यनन्दी का सूत्र (गाथा) में कथन किया जा रहा है, नामनन्दी आदि का स्वरूप तो पूर्वकथित नाम-मङ्गल के अनुसार सरलता से ज्ञेय है ही, इसलिए उसका निरूपण नहीं किया गया है। ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 123
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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