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________________ न य भावो भावन्तरमवेक्खए किन्तु हेउनिरवेक्खं। उप्पज्जइ तयणन्तरमवेइ तमहेउअं चेव // 70 // [संस्कृतच्छाया:- न च भावो भावान्तरमपेक्षते किन्तु हेतुनिरपेक्षम्। उत्पद्यते तदनन्तरमपैति तदहेतुकं चैव॥] न च भावो घटादिरुत्पद्यमानो भावान्तरं मृत्पिण्डादिकमपेक्षते, किन्तु हेतुनिरपेक्ष एवोत्पद्यते। अपेक्षा हि विद्यमानस्यैव भवति। न च मृत्पिण्डादिकारणकाले घटादि कार्यमस्ति, अविद्यमानस्य चाऽपेक्षायां खरविषाणस्याऽपि तथाभावप्रसङ्गात्। यदि चोत्पत्तिक्षणात् प्रागपि घटादिरस्ति, तर्हि किं मृत्पिण्डाद्यपेक्षया?, तस्य स्वत एव विद्यमानत्वात्। अथोत्पन्नः सन् घटादिः पश्चाद् मृत्पिण्डादिकमपेक्षते। हन्त! तदिदं मुण्डितशिरसो दिनशुद्धिपर्यालोचनम्, यदि हि स्वत एव कथमपि निष्पन्नो घटादिः, किं तस्य पश्चाद् मृत्पिण्डाद्यपेक्षया?। अथोत्पद्यमानतावस्थायामसौ तमपेक्षते। केयं नामोत्पद्यमानता?। न तावदनिष्पन्नावयवता, स्वयमनिष्पन्नस्य खरविषाणस्येवाऽपेक्षाऽयोगात्। नापि निष्पन्नावयवता,स्वयं निष्पन्नस्य परापेक्षावैयर्थ्यात्। नाप्यर्धनिष्पन्नावयवता, वस्तुनः सांशताप्रसङ्गात्ः, // 70 // न य भावो भावंतरमवेक्खए किंतु हेउनिरवेक्खं / उप्पज्जड तयणंतरमवेड तमहेउअं चेव / __ [(गाथा-अर्थः) भाव (नवीन उत्पादरूप पर्याय) किसी अन्य भाव की अपेक्षा नहीं रखता, किन्तु हेतु-निरपेक्ष ही उत्पन्न होता है और उस (अपनी उत्पत्ति) के बाद, अहेतुक (हेतुनिरपेक्ष) ही नष्ट भी हो जाता है।] - व्याख्याः- उत्पद्यमान घटादि रूप भाव मृत्पिण्ड आदि अन्य भाव की अपेक्षा नहीं रखता किन्तु हेतु-निरपेक्ष होते हुए ही उत्पन्न होता (सत्ता में आता) है। अपेक्षा विद्यमान की ही होती है। मृत्पिण्ड आदि कारण के समय घटादि कार्य तो रहता नहीं। यदि अविद्यमान की अपेक्षा रखे, तब तो 'गधे के सींग' की भी कार्यता होने लगेगी। यदि घट का सद्भाव उसके उत्पत्तिक्षण से पहले भी होता हो तो (उस स्वतः विद्यमान घट को अपनी उत्पत्ति के लिए) मृत्पिण्ड की अपेक्षा ही क्यों हो? क्योंकि वह तो स्वतः विद्यमान है ही। - यदि ऐसा कहो कि घट आदि उत्पन्न होकर, बाद में मृत्पिण्ड आदि (कारणों) की अपेक्षा रखता है, तो यह तो वैसी ही असंगतिपूर्ण बात हुई जैसे कोई सिर मुंडनकर, बाद में शुद्ध दिन होने (के मुहूर्त) का विचार करे। यदि यह कहो कि घट आदि स्वतः ही किसी तरह उत्पन्न हो जाते हैं तो (उत्पत्ति के बाद) मृत्पिण्ड आदि की अपेक्षा की क्या जरूरत है? यदि ऐसा कहो कि उत्पन्न होने की प्रक्रिया-अवस्था में घट आदि मृत्पिड की अपेक्षा रखता है तो आप यह बताएं कि उत्पन्न होने की स्थिति से आपका क्या तात्पर्य है? यदि आपका तात्पर्य 'अनिष्पन्न अवयव वाली स्थिति' से है तो जो स्वयं अनिष्पन्न है, उसे किसी की उसी प्रकार अपेक्षा --------- विशेषावश्यक भाष्य ---- 107 र
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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