________________ [संस्कृतच्छाया:- अथवा नोदेशे नोआगमतस्तदेकदेशात्। भूतस्य भाविनो वाऽऽगमस्य यत् कारणं देहः॥] अथवा 'नो' इति नोशब्दः 'देसम्मि त्ति' देशनिषेधवचनो विवक्ष्यत इत्यर्थः। ततश्च नोआगमत इति कोऽर्थः?, इत्याहतदेकदेशादागमैकदेशादागमैकदेशमाश्रित्य द्रव्यमङ्गलमित्यर्थः। किं पुनस्तत्? इति चेत्। मङ्गलपदार्थज्ञस्याऽचेतनः, भव्यस्य तु सचेतनो देह इत्यनुवर्तमानं संबध्यते। कः पुनरिहाऽऽगमस्यैकदेशो यमाश्रित्य नोआगमतो द्रव्यमङ्गलमिदं स्यात्? इति। अत्रोच्यतेयथोक्तो ज्ञभव्यशरीररूपो देह एवाऽत्राऽऽगमैकदेशः। ननु जडस्य देहस्य कथमागमैकदेशता?, इति। अत्राह- 'भूयस्सेत्यादि' यद् यस्मादचेतनो देहो भूतस्याऽतीतस्य मङ्गलपदार्थज्ञानलक्षणस्याऽऽगमस्य कारणं हेतुः, सचेतनस्तु भव्यदेहो भाविनो यथोक्तस्याऽऽगमस्य कारणम्, तस्माद् निजकार्यस्याऽऽगमस्यैकदेशे वर्तत एव, कारणं हि कार्यस्यैकदेशे वर्तत एव, यथा मृत्तिका घटस्य। अभेद एव / घट-मृत्तिकयोरिति चेत् / नैवम्, भेदाऽभेदयोरेव जैनैरिष्टत्वात्, यद वक्ष्यति नत्थि पुढवीविसिट्ठो घडो त्ति जं तेण जुज्जइ अणण्णो। जं पुण घडो त्ति पुव्वं नासी पुढवी तओ अण्णो॥१॥ [नास्ति पृथिवीविशिष्टो घट इति यत् तेन युज्यतेऽनन्यः। यत् पुनर्घट इति पूर्वं नासीत् पृथिवी ततोऽन्यः॥] [(गाथा-अर्थः) अथवा 'नो' शब्द आंशिक (देश-)निषेध का वाचक है, इसलिए भूत या भावी आगम का कारण जो शरीर है, वह 'नोआगम से द्रव्यमङ्गल' है, क्योंकि वह शरीर आंगमरूप ज्ञान का कारण होता है।] ___व्याख्याः - अथवा 'नो' यानी 'नो' शब्द देश अर्थात् आंशिक निषेध के अर्थ में (भी) यहां विवक्षित है- यह भाव है। (प्रश्न-) 'नो-आगम से' इसका क्या अर्थ हुआ? इस (के समाधान के) के लिए (उत्तर) कहा- तदेकदेश रूप में, आगम के एकदेश (आंशिक) रूप में, यानी आगम के एकदेश : का आश्रयण कर 'द्रव्यमङ्गल है'- यह अर्थ हुआ। (प्रश्न-) वह (द्रव्यमङ्गल) क्या है? (उत्तर-) मङ्गलपदार्थ के ज्ञाता का अचेतन, और भविष्य में ज्ञाता होने वाले का सचेतन देह, इस (कथन) की अनुवृत्ति कर पूर्व वाक्य में जोड़ना चाहिए। (प्रश्न-) यहां फिर 'आगम का एकदेश' क्या है जिसका आश्रय कर 'नोआगम से द्रव्यमङ्गल'-यह कथन किया गया? यहां (उत्तर रूप में) कह रहे हैं- जैसा पहले कहा गया था- वह ज्ञाता का भव्य शरीर रूपी देह ही यहां आगमैकदेश है। (प्रश्न-) जड़ देह की आगम-एकदेशता कैसे हुई? यहां (उत्तर में) कहा- भूतस्य | चूंकि अचेतन देह भूत यानी अतीत मङ्गलपदार्थ-ज्ञान रूप आगम का कारण या हेतु है, और सचेतन भव्य-देह (भी) भावी (पूर्वोक्त मङ्गलपदार्थज्ञान रूपी) आगम का कारण है, इसलिए निजकार्यरूप आगम के एकदेश में (अंशतः) वह विद्यमान है ही, कयोंकि कारण (अपने) कार्य के एकदेश में रहता ही है, जैसे मृत्तिका घट के (एकदेश में रहती है)। (प्रश्न-) घट व मिट्टी का तो अभेद ही है फिर वह घट के एकदेश में रही कैसे कही जा सकती है? (उत्तर-) ऐसा नहीं है। जैनों को भेद-अभेद, ये दोनों ही अभीष्ट हैं। क्योंकि आगे (2104 गाथा में) कहा गया है “पृथिवी यानी मृत्तिका से विशिष्ट यानी पृथक् कोई (पार्थिव) घड़ा नहीं होता, अतः वह मृत्तिका से अनन्य संगत होता है। किन्तु (साथ ही,) घट (अपने निर्माण से) पूर्व में नहीं था, मात्र पृथिवी-मिट्टी ही थी, इसलिए वह (घट) पृथिवी से भिन्न (भी) है।" NA 76 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----