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________________ मङ्गलपदार्थज्ञानयोग्यस्य सम्बन्धी 'देहः' इति वर्तते, सजीवः सचेतनो नोआगमतो भव्यशरीरद्रव्यमङ्गलमित्यर्थः / इदमत्र हृदयम्- य इदानीं मङ्गलपदार्थ न जानीते, भविष्यति तु काले ज्ञास्यति, तस्य संबन्धी सचेतनो देहो भविष्यत्कालनयाऽनुवृत्त्या भविष्यन्मङ्गलपदार्थज्ञानाधारत्वाद् नोआगमतो भव्यशरीरद्रव्यमङ्गलमिति। अत्रापि नोशब्दस्य सर्वनिषेधपरत्वात्, आगमस्य चेदानीमभावाद् नोआगमता समवसे या। भविष्यत्काले मङ्गलपदार्थज्ञानलक्षणस्याऽऽगमस्य कारणत्वात् तु द्रव्यमङ्ग लता, यथा भविष्यद्धृताधारपर्यायकारणत्वाद् रिक्तघृतकुम्भे घृतघटता। नोआगमत इत्येतद् विवृण्वन्नाह- 'आगमरहिओ इत्यादि' नोशब्दस्य सर्वनिषेधवचनत्वाद् नोआगमत इत्यनेनैतदुक्तं भवति, किम्?, इत्याह- मङ्गलपदार्थज्ञस्य भव्यस्य च संबन्धी अचेतनः सचेतनश्च देहो वर्तमानकाले सर्वथैवाऽऽगमरहितः॥ इति गाथार्थः॥४४॥ तदेवं सर्वनिषेधवचनत्वे नोशब्दस्यैवमुदाहरणमुपदर्शितम्, यदि वा देशनिषेधपरेऽपि नोशब्दे एतत् संबध्यत एवेति दर्शयन्नाह अहवा नोदेसम्मि, नोआगमओ तदेगदेसाओ। भूयस्स भाविणो वाऽऽगमस्स जंकारणं देहो॥४५॥ कारण होने से वहां 'द्रव्यमङ्गलता' (भी) है। भव्यस्य वा। यहां 'वा' शब्द द्वितीय पक्ष के समुच्चय का बोधक है। भविष्य में मङ्गल-पदार्थ के ज्ञान की योग्यता रखने वाले भव्य का जो देह सजीव सचेतन है, वह 'नोआगम से भव्यशरीर द्रव्यमङ्गल है' -यह तात्पर्य है। यहां सारभूत बात यह है कि वर्तमान में जो मङ्गलपदार्थ का ज्ञाता नहीं है, किन्तु भविष्य में जो जानेगा, उसका सचेतन देह, भविष्यकाल की दृष्टि से, भविष्य में मङ्गल पदार्थ सम्बन्धी ज्ञान का आधार होने से 'नोआगम से भव्यशरीर द्रव्यमङ्गल' है। यहां भी 'नो' शब्द सर्वथा निषेध का वाचक है। चूंकि वर्तमान में आगम का सर्वथा अभाव है. अतः 'नोआगमता' का निश्चय कर लेना चाहिए। जैसे, भविष्य में घत-आधार रूप पर्याय का कारण होने से (वर्तमान में) खाली घडे में 'घतघटता' (घत का घडा कहलाने की योग्यता) है. उसी तरह भविष्य में 'मङ्गल पदार्थ-सम्बन्धी ज्ञानरूप आगम' के कारण होने से द्रव्यमङ्गलता यहां है। 'नोआगमतः' इस शब्द का स्पष्टीकरण करने हेतु कहा- आगमरहितः। नोशब्द सर्वथा निषेध का वाचक है, इसलिए 'नोआगम' से यह अर्थ प्रकट होता है। (प्रश्न-) कौन-सा अर्थ प्रकट होता है? इस (प्रश्न के समाधान के लिए कहा- मङ्गल पदार्थ के ज्ञाता भव्य का जो अचेतन या सचेतन देह, जो वर्तमान में सर्वथा आगम से रहित है (वह 'नोआगम भव्यशरीर-द्रव्यमङ्गल' है)॥ यह गाथा का अर्थ हुआ // 44 // इस प्रकार, सर्वथा निषेधवाचक 'नो' शब्द का उदाहरण दिया गया / यदि उसे देश (आंशिक)निषेध का वाचक भी मानें तो भी इसका सम्बन्ध संगत ही होता है- यह बताने के लिए कह रहे हैं (45) अहवा नोदेसम्मि, नोआगमओ तदेगदेसाओ। भूयस्स भाविणो वाऽगमस्स जं कारणं देहो // ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 752
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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