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________________ एतदपि भूतभावं तथा भूतभविष्यद्भावं च कथंभूतं सद् द्रव्यम्?, इत्याह- यद् योग्यम्, भूतस्य भावस्य भूतभविष्यतोश्च भावयोरिदानीमसत्त्वेऽपि यद् योग्यमहँ तदेव द्रव्यमुच्यते, नाऽन्यत्, अन्यथा सर्वेषामपि पर्यायानामनुभूतत्वादनुभविष्यमाणत्वाच्च सर्वस्याऽपि पुद्गलादेर्द्रव्यत्वप्रसङ्गात् // इति गाथार्थः // 28 // आह विनेयः- ननु सामान्येन द्रव्यलक्षणमवगतम्, परं द्रव्यमङ्गलं किमभिधीयते? इति प्रस्तुतं निवेद्यताम्, इत्याह आगमओऽणुवउत्तो मंगलसद्दाणुवासिओ वत्ता। तन्नाणलद्धिसहिओ वि नोवउत्तोत्ति तो दव्वं // 29 // [संस्कृतच्छाया:- आगमतोऽनुपयुक्तो मङ्गलशब्दानुवासितो वक्ता। तज्ज्ञानलब्धिसहितोऽपि नोपयुक्त इति तस्माद् द्रव्यम्॥] इह द्रव्यमङ्गलं तावद् द्विधा भवति- आगमतः- आगममाश्रित्य, नोआगमतश्च-नोआगममाश्रित्य, तत्राऽऽगमो मङ्गलशब्दार्थज्ञानस्वरूपोऽत्राऽभिप्रेतः, तमाश्रित्य 'द्रव्यं' द्रव्यमङ्गलमिति पर्यन्ते संबन्धः। कोऽसौ?, इत्याह- वक्ता मङ्गलशब्दार्थप्ररूपकः। (प्रश्न-) यह 'भूतभाव' और 'भूतभविष्यद्भाव' भी किस रूप में 'द्रव्य' है? (अर्थात् मात्र भूतपर्याय वाला होना या भावी पर्यायवाला होना ही 'द्रव्य' का लक्षण है या इसमें कुछ शर्त है?) (इस प्रश्न को दृष्टि में रखकर) कहा -(उत्तर-) जो भूत (अतीत) भाव तथा भावी भाव-ये दोनों वर्तमान में न रहें, फिर भी जो उसे (भूत या भविष्य में) प्राप्त करने के योग्य या लायक हो- वही द्रव्य कहलाता है, अन्य नहीं। अन्यथा (अर्थात् वर्तमान में अविद्यमान-यह शर्त न लगाएं तो) सभी पुद्गल आदि को द्रव्यरूपता प्राप्त (होने की दोषपूर्ण स्थिति) होने लगेगी | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 28 // द्रव्यमङ्गल (आगमतः व नोआगमतः) जिज्ञासु शिष्य ने पूछा- द्रव्य का सामान्य लक्षण तो समझ में आगया, किन्तु यह बताइए कि 'द्रव्यमङ्गल' किसे कहते हैं? इस (के समाधान के लिए कहते हैं- . (29) आगमओऽणुवजुत्तो, मङ्गलसद्दाणुवासिओ वत्ता। तन्नाणलद्धिसहिओ वि, नोवउत्तो त्ति तो दव्वं // [(गाथा-अर्थः) जिसका मन मङ्गलशब्द से अनुवासित है, और सम्बन्धित ज्ञान-लब्धि से युक्त (भी) है, फिर भी (मङ्गल-शब्दार्थ में) उपयोगरहित है, मङ्गलसम्बन्धी उपयोग से रहित (और मङ्गल-शब्दार्थ का) ऐसा वक्ता (प्ररूपक) 'आगम से द्रव्यमङ्गल' है।] व्याख्याः- यहां द्रव्यमङ्गल दो प्रकार का है -(१)आगमतः यानी आगम का आश्रय लेकर (उसे दृष्टि में रखकर) और (२)नो-आगमतः अर्थात् नो-आगम का आश्रय लेकर (उसे दृष्टि में रखकर निरूपित)। मङ्गल-शब्दार्थ जो ज्ञान है, वही यहां 'आगम' रूप में अभिप्रेत है। उस (आगम) का A 56 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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