________________ एतच्च सामान्येन नाम्नो लक्षणमुक्तम्, प्रस्तुते त्वेवं योज्यते- यत्र मङ्गलार्थशून्ये वस्तुनि मङ्गलमिति नाम क्रियते, तद् वस्तु नाम्ना नाममात्रेण मङ्गलमिति कृत्वा नाममङ्गलमित्युच्यते / पुस्तकादिलिखितं च यद् मङ्गलमिति वर्णावलीमात्रम्, तदपि नाम च तद् मङ्गलं चेति कृत्वा नाममङ्गलमित्यभिधीयते // इति गाथार्थः // 25 // अथ सामान्येनैव स्थापनायाः स्वरूपमाह जं पुण तयत्थसुन्नं तयभिप्पाए तारिसागारं। कीरइ व निरागारं इत्तरमियरं व सा ठवणा // 26 // [संस्कृतच्छाया:- यत्पुनः तदर्थशून्यं तदभिप्रायेण तादृशाकारम्। क्रियते वा निराकारमितरद् वा सा स्थापना // ] सा स्थापनाऽभिधीयते, यत् किम्?, इत्याह- यत् क्रियते इन्द्रादिस्थापनारूपतया विधीयते वस्तु, पुनःशब्दो नामलक्षणात् स्थापनालक्षणस्य वैसदृश्यद्योतकः। केन?, इत्याह- तदभिप्रायेण तस्य सद्भूतेन्द्रस्याऽभिप्रायोऽध्यवसायस्तेन। कथंभूतं तद् वस्तु?, इस प्रकार, (पहले जो) दो प्रकारों से 'नाम' का स्वरूप यहां बताया गया था, किन्तु इससे तीसरे प्रकार के 'नाम' का उपलक्षण भी समझ लेना चाहिए। (जैसे) पुस्तक, पत्र या चित्र आदि में लिखित वर्णावली-रूप 'इन्द्र' आदि को भी अन्यत्र 'नाम' रूप में कहा (स्वीकारा) गया है। इस प्रकार, 'नाम' का यह सामान्य लक्षण निरूपित हुआ है। प्रस्तुत प्रकरण में इस (निरूपण) की योजना (संगति) इस तरह से बैठती है- जहां 'मङ्गल' अर्थ से शून्य किसी वस्तु का 'मङ्गल' यह नामकरण किया गया हो, वह वस्तु 'नाम से मङ्गल' होने के कारण 'नाम-मङ्गल' कही जाती है (या कही जाएगी)। पुस्तक आदि आदि में लिखित जो वर्णावली रूप ‘मङ्गल' शब्द है, वह भी 'नाम और (साथ ही) मङ्गल भी' इस अभिप्राय से 'नाम-मङ्गल' कहा जाता है |यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 25 // (स्थापना निक्षेप) अब सामान्यतः 'स्थापना' का स्वरूप कह रहे हैं (26) जं पुण तयत्थसुन्नं, तयभिप्पाएण तारिसागारं। कीरइ व निरागारं इत्तरमियरं व सा ठवणा // [(गाथा-अर्थ) और, जो शब्द के मूल (नियुक्तिगत) अर्थ से शून्य हो और मूल वस्तु के (ही) अभिप्राय से, या तो उसके आकार से युक्त, या फिर उसके आकार से शून्य वस्तु में (मूल अर्थ की) जो प्रतिष्ठापना की जाती है, वह 'स्थापना' है। यह (1) इत्वर (अल्पकालिक), (2) अन्य-अनित्वर (यावत्कथिक, शाश्वत) -इस प्रकार से (दो भेदों वाली) है।] व्याख्याः - उसे 'स्थापना' कहते हैं। (प्रश्न-) वह क्या है? कहते हैं (उत्तर-) जो इन्द्र आदि की स्थापना रूप से (स्वीकृत) की जाती है, वह वस्तु 'स्थापना' है। 'पुनः' शब्द 'नाम' के लक्षण से स्थापना की भिन्नता को दर्शाता (व्यक्त करता) है। (प्रश्न-) किस प्रकार? कहते हैं (उत्तर-) क्योंकि Ma 52 -------- विशेषावश्यक भाष्य --