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________________ 30 पाइअविनाणकहा-२ पण्णत्तिं विजं संभरेइ, तीए तं बालं समप्पित्ता सो कहिपि गओ / पण्णत्तीए सा बालिया वराह-रुरु-रोज्झजणियघोरारावरउद्दे अरण्णम्मि खित्ता / सुहडेहिं कंदर-कराल-गिरि-सिहर-सरियाधरणीसुं निउणं निरिक्खमाणेहिं पि पुण्णलहुआ सा बाला कहिंपि नहि दिट्ठा। तओ ते आगंतूणं रायपुरओ कहिंति-नाह ! जल-थल-नह-यलमज्झे निरूविया कह वि सा न हु दिट्ठा / तओ ते आगंतूणं रायपुरओ कहिंति- नाह ! जल-थल-नहयलमझे निरूविया कहवि सा न हु दिठ्ठा / तं निसुणिऊण सोयसल्लियसरीरो नरिंदो अक्कंदइ-हा वच्छे ! तुह विरहे नयरं नरयं विसेसइ / अह सा अणंगसारा बालिगा सरणरहिआ रणम्मि कलुणसरेण पसुगणं पि रोयावंती रोयइ, अप्पणा अप्पं आसासंती खुहापिवासं सहंती अरण्णभयउव्विग्गा नमोक्कारं परावत्तंती दसम-अट्ठमभत्तेण य तवसा अप्पाणं भाविंती पारणाम्मि फलेहिं एगासणं करंती दिवसाइं गमेइ, एवं तिसंहस्सवरिसपज्जंतं तवसा कालंगमेऊण संलेहणाए किसीभूयदेहा गंतुमवि असमत्था जाया, तइया चउब्विहाहारञ्चागरूवभत्तपञ्चक्खाणं करेइ, संकडे वि
SR No.004269
Book TitlePaiavinnankaha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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