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________________ 152 पाइअविनाणकहा-२ अह सिक्खगो वि चिंतेइ-अहो ! महापावभायणेण मए एस महप्पा एरिसकिलेसजलहिमि पक्खित्तो, अहं एक्कोच्चिय धम्मरासिस्स एयस्स सिस्सछउमेणं पञ्चणीओं जाओ म्हि, मज्झ दुव्विलसियं धिद्धी !, इअ अप्पाणं निंदमाणस्स सा कावि भावणा जाया, जीए तस्स विमलं केवलनाणं पाउब्भूयं / तओ सो निम्मलकेवलनाणपयडियतिहुवणवत्थुवित्थरो गंतुं तहा पयट्टो जह तस्स पयखलणा न हवेइ / ___ अह जायंमि पभाए दंड-पहारुत्थ-रुहिर-उल्लसिरं सिक्खगं ठूणं चंडरुद्दसूरी विचिंतेइ-पढमदिणदिक्खियस्स वि सिक्खगस्स अहो ! एवंविहा खमा मह पुणो विहला सुयसंपया, खमागुणेण विहीणस्स मम सूरित्तं धी ! धी !' इअ संवेगवेगओ तं पराए भत्तीए खामंतो तं झाणं पडिवन्नो जेण सो वि केवली जाओ / एवं ते दुण्णि केवलनाणिणो भव्वे जीवे पडिबोहिऊणं अयरामरपयं संपत्ता / . 1. प्रत्यनीकः प्रतिपक्षी / /
SR No.004269
Book TitlePaiavinnankaha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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